Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 135
________________ १२८ जीने का उसूल स्वर्गिक जीवन जो लोग अपने क्रोध को अपने काबू में रखते हैं, स्वर्ग उनके लिए है। स्वर्ग उनके लिए भी है, जो गलती करने वालों को माफ किया करते हैं। भगवान उन्हीं से प्यार करते हैं, जो दयालु और क्षमाशील होते हैं। स्वर्गानन्द स्वर्ग का आनन्द ‘स्वर्गीय' होकर नहीं, स्वर्ग को जी कर प्राप्त कीजिए। स्वर्गावतण घर-परिवार में पारस्परिक प्रेम और सुख-शान्ति होना ही स्वर्ग को जीना है। स्वावलम्बन बच्चों को काम कर-करके देने की बजाय उन्हें काम करना सिखाइये, वे सदा के लिए स्वावलम्बी हो जाएँगे। स्वास्थ्य बेहतर स्वास्थ्य के लिए अन्न को लीजिए आधा, सब्जी को दुगुना, हँसी को कीजिए तिगुना, और पानी पीजिए चौगुना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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