Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 133
________________ १२६ जीने का उसूल स्त्री-विकास स्त्री को अपना विकास करने का अधिकार है, पर वह पुरुष की सहचर बनकर आगे आए, विरोधी बनकर नहीं। स्थिति हमेशा याद रखो कि सदा एक ही स्थिति नहीं रहती। स्थूल बुद्धि जिनकी अक्ल हाथी जैसी मोटी होती है, वे नहाकर भी धूल-माटी में ही लोटते हैं। स्नेह-दान किसी को इतना स्नेह दो कि हमारा स्नेह ही उसके लिए यादगार तोहफ़ा बन जाए। स्नेह और श्रद्धा स्नेह जब देह-भाव से ऊपर उठ जाता है तो वह श्रद्धा और वात्सल्य बन जाता है। स्वच्छता स्वच्छता स्वर्ग की जननी है। आप स्वच्छता अपनाइये, प्रदूषण का रोग स्वत: ही मिट जाएगा। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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