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जीने का उसूल
सुषुप्ति - जागृति
सृजन
सेवा
'सो जा वत्स, सो जा' - हृदय में शान्ति का माधुर्य लिये; 'जाग वत्स, जाग' - हृदय में जागरण का आनन्द लिये।
सृजन - विध्वंस
हे परम सत्ता! मैं तुम्हारा सृजन हूँ। यह सृजन सदा सार्थक होता रहे ।
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समय सृजन में लगता है, विध्वंस तो पलक झपकते हो जाता है।
सेवा से हमें मोक्ष या वैकुंठ न भी मिले, तब भी हमें मानवता की सेवा करनी चाहिये ।
सेवा और ध्यान
सेवा करना ध्यान से अधिक सुगम है, पर बिना ध्यान के स्वयं के सत्य की अनुभूति नहीं होती ।
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