Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 120
________________ जीने का उसूल ११३ सत्य और समझ सत्य की जन्मपत्री न जाने किस विधाता ने लिखी है कि सौ बार समझाने पर भी वह समझ में नहीं आता। सत्यजीवी यह झूठी दुनिया सत्य के लिए जीने वालों को सलीब के सिवाय दे भी क्या सकती है? सत्य-मैत्री सत्य का कोई साथी नहीं है, परन्तु वह सबका साथी है। सत्य-स्वीकृति सत्य कितना भी कड़वा क्यों न लगे, उसे स्वीकारना ही होगा। सत्यानुभव न सूचनाओं का अन्त है, न सम्मान का। हम स्वयं को उस सत्य को जानने के लिए समर्पित करें जो कि सम्पूर्ण चराचर जगत् की आत्मा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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