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जीने का उसूल शरीर-मंदिर
शरीर के मंदिर की तभी शोभा है, जब उसमें रहने वाले देवता की प्रतिमा सुन्दर हो।
शाकाहार
शाकाहार भोजन का विवेक है, पर हर समय साग-सब्जियाँसलाद खाना शाकाहार की शिक्षा नहीं है। अन्न-दूध-मेवामिष्ठान्न भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
शान्त मन
शांत मन के लिए सीमित साधन भी सुखावह हैं जबकि अशांत मन को अपार वैभव भी सुखदायी नहीं है।
शान्त-अशान्त
शान्त मन का स्वामी बनकर जीने से बड़ा कोई पुण्य नहीं, अशान्त मन का गुलाम बनकर जीने से बड़ा कोई पाप नहीं।
शान्ति
शान्ति चाहिए तो शांत रहिए। हर दिन की शुरूआत शांतिपूर्वक कीजिए। हर दिन का समापन भी शांतिपूर्वक ही सम्पन्न कीजिए।
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