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जीने का उसूल
विवेक और गुरु
विवेक को अपना गुरु बनाइये और जैसा वह रास्ता दिखाए, वैसा ही चलिए ।
विवेकहीनता
बिना संयम और विवेक का मनुष्य अंधेर नगरी के चौपट राजा के समान है।
विश्व - प्रेम
पंथ-परम्परा के व्यामोह में उलझकर कुएँ के मेंढ़क न बनें। संसार तो सागर की तरह विराट् है अत: सारे संसार से प्यार करें ।
विश्वास
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जिस पर विश्वास हो, यदि वह ढोंगी निकल जाये, तो व्यक्ति उसका चेहरा देखना तो क्या, नाम सुनना भी पसन्द नहीं
करता ।
विश्वास और सत्य
तुम्हारा विश्वास चाहे जिस कर्म में हो, पर उसका सत्य तो तुम्हारे भीतर है।
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