________________
जीने का उसूल मित्र
सरवर के पंछी जैसा मित्र न बनाएँ जो दाना-पानी चुगकर उड़ जाए। मित्र हो मछली जैसा जो हर हाल में पानी के साथ ही एकरूप रहे।
मित्रता
यदि बड़े आदमी से मित्रता हो जाये, तो भी छोटे की मित्रता को भुलाना नहीं चाहिए।
मित्रभाव
जीवन में यदि हम किसी को मित्र न बना पाएँ, तो कम-सेकम किसी को शत्रु तो न ही बनाएँ।
मुक्ति
मुक्ति चाहिए तो माया की परतन्त्रता के मकड़जाल से स्वयं को छुड़ा लीजिए।
मुक्ति-सूत्र
हमारे भीतर जो भी चल रहा है, उसे देखो, बस देखोनिरन्तर। उसके साथ बहो मत, बस देखो और पार लगो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org