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जीने का उसूल धर्म-कर्म
सांसारिक का सारा धर्म-कर्म भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए है, मुक्ति के लिए नहीं।
धर्म-ध्यान
तन का समर्पण धर्म है और मन का समर्पण ध्यान।
धर्म-निरपेक्ष
भारत वह देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों के पूजा-स्थल एक दूसरे से कंधा मिलाए खड़े रह सकते हैं।
धर्म-पतन
दुनिया में जितने युद्ध और आतंक धर्म के नाम पर हुए हैं, उतने किसी अन्य कारण से नहीं।
धर्म-भय
धर्म को खतरा उन अंधविश्वासों से है, जो धर्म का बुरका ओढ़ लेते हैं।
धर्म-विभाजन
जब धर्म किन्हीं पंथों और समुदायों में बँट जाता है, तो उसके प्रवर्तक की आत्मा उसमें आरोपित तो हो सकती है, पर व्याप्त नहीं।
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