________________
जीने का उसूल
प्रेमदान
हमारा प्रेम उन्हें मिले, जो अब तक प्रेम के सुख से वंचित
रहे हैं।
प्रेम-पीड़ा
प्रेम मन को बहलाने की क्रीड़ा नहीं, हृदय को हिला देने वाली पीड़ा है।
प्रेम-प्रगाढ़ता
प्रेम जब अपनी प्रगाढ़ता में मौन हो जाता है तब वह बोलता नहीं है, वरन् करीबी को ही सुख का द्वार मानता है
1
प्रेम-व्यवहार
यदि बड़े और छोटे, दोनों ही प्रेम और सम्मान को महत्त्व दें, तो दोनों के बीच मर्यादा की गरिमा बनी रहेगी ।
प्रेम - शून्य
६९
प्रेम-शून्य जीवन बिना फूलों का उपवन है।
प्रेम-सम्बन्ध
जिन दिलों के बीच प्रेम का रिश्ता है, स्वर्ग का फूल वहीं
खिलता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org