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जीने का उसूल प्रार्थना-फल
प्रार्थना का फल प्रेम है, प्रेम का फल सेवा है और सेवा का फल परमात्मा है।
प्रेम
जहाँ सारे शस्त्र असफल हो जाते हैं, वहाँ प्रेम विजय दिला देता है।
प्रेम को सार्वजनिक रखिए, नहीं तो वह पाप बन जाएगा।
प्रेम और प्रवंचना
प्रेम पुण्य है, प्रवंचना पाप।
प्रेम और स्वर्ग
जब तक धरती पर प्रेम का एक भी अंश है, स्वर्ग की सम्भावना बनी रहेगी।
प्रेम और वासना
वासना की आग जब शान्त हो जाती है, तो पारस्परिक लगाव कम हो जाता है।
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