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जीने का उसूल भगवद्प्रेम
वह भगवान से क्या प्यार करेगा जो इन्सान की गोद में जन्म लेकर खुद इन्सान को ही प्यार नहीं कर पाया।
भगवद्भूमि
जब हम भगवान की भक्ति कर रहे होते हैं, तो निश्चय ही कुछ अच्छे होते हैं। बाकी तो वे श्वान अच्छे हैं, जो मालिक की रोटी खाते हैं और उसकी हाजरी भी बजाते हैं।
भरोसा
जिन्हें अपने पर भरोसा नहीं है, उन्हें औरों के भरोसे चलना पड़ता है।
भला-बुरा
बुरे लोग सतयुग में भी थे और भले लोग कलियुग में भी हैं। भलाई को जीना सतयुग में जीना है जबकि बुराई को जीना कलियुग में निवास करना है।
भलाई
अपने लिए तो हर कोई मरता है किन्तु औरों की भलाई के लिए मरने का सौभाग्य तो विरलों को ही मिलता है।
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