________________
जीने का उसूल प्रवृत्ति और प्रकृति
प्रवृत्ति में परिवर्तन लाया जा सकता है, पर प्रकृति को बदलना दुष्कर कार्य है।
प्रशंसा
जो तुम्हारी निंदा करे, तुम उसकी प्रशंसा करो। आज नहीं तो कल वह तुम्हारा हो जायेगा।
प्रशंसातिरेक
उससे सावधान रहिए, जो आपके मुँह पर आपकी प्रशंसा के
पुल बांधे।
प्रशंसा-विवेक
किसी के मुँह से अपनी बड़ाई सुनकर खुद को अच्छा मान लेना अच्छी बात नहीं है।
प्रशासन
प्रशासन ऐसा हो, जो सबको शान्ति और सुरक्षा देने में सहकारी बन सके।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org