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जीने का उसूल पड़ाव-मंज़िल
पड़ाव को मंज़िल मान लेने वाले लोग सौ के चक्कर में लाख को खो बैठते हैं।
पठन-लेखन
चिन्तन का पथ खुलने के बाद पुस्तकें पढ़ी नहीं, लिखी जाती हैं।
पढ़ाई
पढ़ना यूरोपियन लोगों से सीखें, जो बिना यात्रा के पढ़ाई अधूरी मानते हैं।
पतंग
आकाश में उड़ती हुई पतंग का दोस्त कोई नहीं होता।
पतन
विकृत विचार और दुष्कृत आचरण स्वयं की आध्यात्मिक
मृत्यु है।
जो पति प्रेम न दे, उसका होना न-होने के बराबर है।
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