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जीने का उसूल
परवाह-लापरवाह
जो झाड़ के हर तिनके के प्रति सावचेत रहते हैं, वे अपने क्षण-क्षण बीत रहे जीवन और समय के प्रति लापरवाह क्यों हो जाते हैं?
परम्परा
परम्परा के अनुपालन से पहले उसे सत्य और ज्ञान की कसौटी पर परख लेना अधिक बेहतर है।
परम्परा-निर्माण
हम केवल परम्परा का निर्वहन ही न करते रहें बल्कि परम्परा का भी निर्माण करें।
नई
परम्परा-प्रतिकार
परम्पराओं को स्वीकार करने का यह अर्थ नहीं है कि जो अनुचित है, उसका प्रतिकार न किया जाए।
परम्परा-विद्रोह
अंध परम्पराओं के प्रति विद्रोह करने में सहना तो बहुत कुछ पड़ता है, पर विद्रोह सफल होने पर परम्परा में स्वत: ही परिवर्तन हो जाता है।
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