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जीने का उसूल
कृत्रिमता
केन्द्रित
क्रोध
प्रकाश कृत्रिम ही क्यों न हो, कम-से-कम अंधकार से तो
अच्छा ही है।
जीवन बैलगाड़ी का चलता पहिया है। निश्चिंत तो वह है, धुरी की तरह केन्द्रित है।
क्रोध दिमाग का धुँआ है । यह करने वाले को भी धुँधवाता है और करवाने वाले को भी ।
क्रोध-परिणति
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सावधान! आपका पल भर का क्रोध भी आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है।
क्रोध- नियंत्रण
क्रोध आने पर बैठ जाओ। बैठे हो, तो लेट जाओ। लेटे हो तो उठकर कहीं और चले जाओ ।
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