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ચૂંટ
[ जैन प्रतिमाविज्ञान
थी । उपर्युक्त स्थिति में व्यापारियों एवं सामान्यजनों में जैन धर्मं की लोकप्रियता बनाये रखने के लिए ही सम्भवत: जैन देवकुल में यक्ष-यक्षो युगलों एवं महाविद्याओं को महत्ता प्राप्त हुई जिनकी आराधना से भौतिक सुख की प्राप्ति सम्भव थी । जिन या तीर्थंकर
धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थंकर उपास्य देवों में सर्वोच्च हैं । हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि में उन्हें देवाधिदेव कहा है । विभिन्न पुराणों एवं चरित ग्रन्थों में जिनों के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का विस्तार से उल्लेख है । गुजरात और राजस्थान के ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० के मन्दिरों के वितानों, वेदिकाबन्धों एवं स्वतन्त्र पट्टों पर ऋषभ, शान्ति, मुनिसुव्रत, नेमि, पार्श्व एवं महावीर जिनों के जीवन की घटनाओं, मुख्यतः पंचकल्याणकों को विस्तार से उत्कीर्ण किया गया (चित्र १२-१४, २२, २९, ३९-४१) ।
ल० आठवीं नवीं शती ई० तक जिनों के लांछनों का निर्धारण पूर्ण हो गया । तिलोयपण्णत्ति एवं प्रवचनसारोद्धार में जिन लांछनों की प्राचीनतम सूची प्राप्त होती है । ७ लांछन-युक्त प्राचीनतम जिन मूर्तियां गुप्तकाल की हैं । ये मूर्तियां राजगिर (नेमिनाथ ) ' और भारत कला भवन, वाराणसी (क्र० १६१ - महावीर ) की हैं ( चित्र ३५) । आठवीं शती ई० के बाद की जिन मूर्तियों में लांछनों का नियमित अंकन प्राप्त होता है ।
यक्ष-यक्षी
ल० छठीं शती ई० में जिनों के साथ यक्ष-यक्षी युगलों (शासनदेवताओं) को सम्बद्ध करने की धारणा विकसित हुई ।" ये यक्ष यक्षी जिनों के सेवक देव के रूप में संघ की रक्षा करते हैं ।" यक्ष-यक्षी युगल से युक्त प्राचीनतम जिन मूर्ति छठीं शती ई० की है । १२ अकोटा (गुजरात) से प्राप्त इस ऋषभ मूर्ति में यक्ष सर्वानुभूति (या कुबेर ) और यक्षी अम्बिका हैं । ल० आठवी-नवीं शती ई० तक २४ जिनों के स्वतन्त्र यक्ष-यक्षी युगलों की सूची निर्धारित हो गयी । १३ यक्ष-यक्षी युगलों की प्रारम्भिक सूची तिलोयपण्णत्ति १४ (दिगम्बर), कहावली १५ (श्वेताम्बर) एवं प्रवचनसारोद्वार (पवयणसारुद्धारश्वेताम्बर) में प्राप्त होती है । तिलोयपण्णत्ति की २४-यक्ष-यक्षियों की सूची इस प्रकार है :
१ अभिधानचिन्तामणि देवाधिदेवकाण्ड २४-२५
२ विष्टर नित्ज, एम० पू०नि० पृ० ५१०-१७ ३ ये चित्रण ओसिया की देवकुलिकाओं, जालोर के पार्श्वनाथ मन्दिर, विमलवसही, लूणवसही और कुंमारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों पर हैं ।
४ च्यवन ( जन्म के पूर्व ), जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण ।
५ तिलोयपण्णत्ति ४.६०४-६०५
६ प्रवचनसारोद्धार ३८१-८२
७ इसके पूर्व केवल आवश्यक नियुक्ति में ही ऋषभ के शरीर पर वृषभ चिह्न का उल्लेख है - शाह, यू०पी०, 'बिगिनिंग्स ऑव जैन आइकनोग्राफी', सं०पु०प०, अं ९, पृ० ६
८ चन्दा, आर० पी०, 'जैन रिमेन्स ऐट राजगिर', आ०स० ई०ए०रि०, १९२५-२६, पृ० १२५-२६
९ शाह, यू०पी०, 'ए फ्यू जैन इमेजेज़ इन दि भारत कला भवन, वाराणसी', छवि, १९७१, वाराणसी, पृ० २३४
१० शाह, यू०पी०, 'इण्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज़ इन जैन वरशिप', प्रो०ट्रां०ओ०कां०, २०वां अधिवेशन १९५९, ११ हरिवंशपुराण ६५.४३ - ४५; तिलोयपण्णत्ति ४.९३६
पृ० १४१-४३
१२ शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, बम्बई, १९५९, पृ० २८-२९, फलक १०-११
१३ शाह, यू०पी०, 'आइकानोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी, दि यक्षी ऑव ऋषभनाथ', ज०ओ०ई०, खं० २०, अं० ३, पृ० ३०६
१४ वही, पृ० ३०४; जैन, ज्योतिप्रसाद, पू०नि०, पृ० १३८
१५ शाह, यू०पी०, 'इण्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज इन जैन वरशिप', पृ० १४७-४८
१६ मेहता, मोहनलाल तथा कापड़िया, हीरालाल, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, वाराणसी, १९६८, पृ० १७४-७९
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