________________
[ जैन प्रतिमाविज्ञान श्वेतांबर और दिगंबर परम्पराओं में अम्बिका' की उत्पत्ति की विस्तृत कथाएं क्रमशः जिनप्रभसूरिकृत 'अम्बिका-देवी-कल्प' (१४०० ई० ) और यक्षी कथा (पुण्याश्रवकथा का अंश) में वर्णित हैं । श्वेतांबर परम्परा में अम्बिका के पुत्रों के नाम सिद्ध और बुद्ध तथा दिगंबर परम्परा में शुभंकर और प्रभंकर हैं । 2 श्वेतांबर कथा के अनुसार अम्बिका पूर्व - जन्म में सोम नाम के ब्राह्मण की भार्या थी जो किसी कल्पित अपराध पर सोम द्वारा निष्कासित किये जाने पर अपने दोनों पुत्रों के साथ घर से निकल पड़ी। अम्बिका और उसके दोनों पुत्रों को भूख-प्यास से व्याकुल जान कर मार्ग का एक सूखा आम्रवृक्ष फलों से लद गया और सूखा कुंआ जल से पूर्ण हो गया। अम्बिका ने आम्र फल खाकर जल ग्रहण किया और उसी वृक्ष के नीचे विश्राम किया । कुछ समय पश्चात् सोम अपनी भूल पर पश्चाताप करता हुआ अम्बिका को ढूंढने निकला | जब अम्बिका ने सोम को अपनी ओर आते देखा तो अन्यथा समझ कर मयवश दोनों पुत्रों के साथ कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली । अगले जन्म में यही अम्बिका नेमिनाथ की शासनदेवी हुई और उसके पूर्वजन्म के दोनों पुत्र इस जन्म में भी पुत्रों के रूप में उससे सम्बद्ध रहे । सोम उसका वाहन (सिंह) हुआ । अम्बिका की भुजा में आम्रलुम्बि एवं शीर्षभाग के ऊपर आम्रशाखाओं के प्रदर्शन भी पूर्वजन्म की कथा से सम्बद्ध हैं। देवी के हाथ का पाश उस रज्जु का सूचक है जिसकी सहायता से अम्बिका ने कुएं से जल निकाला था । इस प्रकार अम्बिका मूर्ति की प्रमुख लाक्षणिक विशेषताओं को उसके पूर्वजन्म की कथा से सम्बद्ध माना गया है ।
I
२२४
afront or कुष्माण्ड पर हिन्दू दुर्गा या अम्बा का प्रभाव स्वीकार किया गया है। पर वास्तव में तान्त्रिक ग्रन्थ " के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में वर्णित अम्बिका के प्रतिमा-लक्षण हिन्दू दुर्गा से अप्रभावित और भिन्न | हिन्दू प्रभाव केवल जैन यक्षी के नामों एवं सिंहवाहन के प्रदर्शन में ही स्वीकार किया जा सकता है ।
दक्षिण भारतीय परम्परा — दक्षिण भारतीय ग्रन्थों में सिंहवाहना कुष्माण्डिनी का धर्मदेवी नाम से भी उल्लेख है । दिगंबर ग्रन्थ में चतुर्भुजा यक्षी के ऊपरी हाथों में खड्ग एवं चक्र का तथा निचले हाथों से गोद में बैठे बालकों को सहारा देने का उल्लेख है । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में द्विभुजा यक्षी के करों में फल एवं वरदमुद्रा वर्णित है । यक्षयक्षी-लक्षण में चतुर्भुजा धर्मदेवी की गोद में उसके दोनों पुत्र अवस्थित हैं तथा देवी दो हाथों से पुत्रों को सहारा दे रही है, तीसरे में आम्रलुम्बि लिये है और उसका चौथा हाथ सिंह की ओर मुड़ा है । स्पष्ट है कि दक्षिण भारतीय परम्परा में अम्बिका के साथ आम्रलुम्बि का प्रदर्शन नियमित नहीं था । अम्बिका की गोद में एक के स्थान पर दोनों पुत्रों के चित्रण की परम्परा लोकप्रिय थी ।
मूर्ति-परम्परा
उत्तर भारत में जैन यक्षियों में अम्बिका की ही सर्वाधिक स्वतन्त्र और जिन-संयुक्त मूर्तियां मिली हैं । ल० छठी शती ई० में अम्बिका को शिल्प में अभिव्यक्ति मिली । नवीं शती ई० तक सभी क्षेत्रों में अधिकांश जिनों के साथ यक्षी के
१ पूर्वजन्म में अम्बिका के नाम अम्बिणी (श्वेतांबर) और अग्निला (दिगंबर) थे ।
२ शाह, यू०पी० पू०नि, पृ० १४७-४८
1
३ वही, पृ० १४८ | दिगंबर परम्परा में यही कथा कुछ नवीन नामों एवं परिवर्तनों के साथ वर्णित है ।
४ बनर्जी, जे०एन० पू०नि०, पृ० ५६२ । हिन्दू दुर्गा को अम्बिका और कुष्माण्डी ( या कुष्माण्डा) नामों से भी सम्बोधित किया गया है ।
५ तान्त्रिक ग्रन्थ में जैन अम्बिका का शिवा, शंकरा, चण्डिका, अघोरा आदि नामों से सम्बोधन एवं करों में शंख और चक्र के प्रदर्शन का निर्देश हिन्दू अम्बा या दुर्गा के प्रभाव का समर्थन करता है । हिन्दू दुर्गा का वाहन कभी महिष और कभी सिंह बताया गया है और उसके करों में अभयमुद्रा, चक्र, कटक एवं शंख प्रदर्शित हैं ।
द्रष्टव्य, राव, टी०ए० गोपीनाथ, पु०नि०, पृ० ३४१-४२ ६ रामचन्द्रन, टी० एन० पू०नि०, पृ० २०९
७ शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० २८-३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org