________________
परिशिष्ट-३]
२६५
आयुध
सं० महाविद्या वाहन भुजा-सं० ११ (i) सर्वास्त्रमहाज्वाला | शूकर (या कलहंस | चार
या ज्वाला-श्वे० या बिल्ली) (ii) ज्वालामालिनी-दि० महिष
आठ
| दो हाथों में ज्वाला; या चारों हाथों में सर्प
पदम
चार
१२ मानवी-(क) श्वे०
(ख) दि०
धनुष, खड्ग, बाण (या चक्र), फलक आदि । देवी ज्वाला से युक्त है। वरदमुद्रा, पाश, अक्षमाला, वृक्ष (विटप) मत्स्य, त्रिशूल, खड्ग, एक भुजा की सामग्री का अनुल्लेख है सर्प, खड्ग, खेटक, सर्प (या वरदमुद्रा)
शंकर
चार
१३ (i) वैरोट्या-श्वे०
सर्प (या गरुड या सिंह)
सिंह
(ii) वैरोटी-दि० १४ (6) अच्छुप्ता-श्वे०
(ii) अच्युता-दि०
अश्व अश्व
चार
१५ मानसी-(क) श्वे०
(ख) दि०
। हंस (या सिंह)
चार
चार करों में केवल सर्प के प्रदर्शन का उल्लेख है चार
शर, चाप, खड्ग, खेटक ग्रन्थों में केवल खड्ग और वज्र धारण करने के उल्लेख हैं।
वरदमुद्रा, वज्र, अक्षमाला, वज (या त्रिशूल) हाथों की | दो हाथों के नमस्कार-मुद्रा में होने का उल्लेख है। संख्या का अनुल्लेख है
खड्ग, खेटक, जलपात्र, रत्न (या वरद-या-अभय-मुद्रा) चार देवी के हाथ प्रणाम-मुद्रा में होंगे (प्रतिष्ठासारसंग्रह);
वरदमुद्रा, अक्षमाला, अंकुश, पुष्प हार (प्रतिष्टासारोद्धार | एवं प्रतिष्टातिलकम्)
चार
१६ महामानसी-(क) श्वे० सिंह (या मकर)
(ख) दि०
३४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org