Book Title: Jain Pratimavigyan
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 330
________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान यक्षेश-११३, २१०-१२ | लघु जिन मूर्तियां-८९-९२, ९५, १०४, १०६, ११७, यक्षश्वर--९८,१५५, १७८-७९, २५१ १३१, १३९, १४४-४५, १४९, १५१, यमुना-६९, ७३, ७४ २५०-५१ यशोदा-१३६, १४० ललाट-बिम्ब-१३४ यशोमती-१२१ ललितांग देव--१३३ यू०पी० शाह-६-८, १५, ४४, ४६, १०८, २२३, २४५ लिल्वादेव-८७ योगिनी-४३, २४९ लोकदेवी मनसा--२३६ योगी की ऊर्ध्व श्वांस प्रक्रिया-८९ लोक परम्परा के देवता--३६ लोकपाल-३६ रत्नपुर-१०७ लोहानीपुर-जिन-मूर्ति-१, १६, १७, ४५, ८०, २४८ रलाशय देश-११६ ल्यूडर-१८ राजगिर–२०, २७, ५०,७६, ८१, ९०, ९७, ११४-१५, ११८, १२४, १३६, १४९, १५१, २४८, २५० बज्रनाभ-९३, ९४, १३३ राजघाट-५२, ११८-१९, १२८ वज्र लांछन-१०७ राजपारा-११० वज्रशृंखला-९८,१७९-८० राजशाही-७८ वडनगर–५३ राजस्थान-५६.६६ वप्रा (या विपरीता)-११६ राजीमती--११७, १२२-२४ वरनंदि–१८४ राम–२, ४१, ७३, ११४, २१९, २४९, २५३ वरभृता-१०७, २०० रामगढ़--५९, १२८ वराहमिहिर-८१ रामगुप्त--१९-२० वराह लांछन-१०६ रामादेवी-१०४ वरुण-५८, ११४, १५९, २१३-१४, २५२ रायपसेणिय-२९, ३१ वर्धमान-१३६, १५०, २४५ ४६ रावण-२१९ वर्माण-६० रीछ लांछन-१०७ वलभी-५१ रीवा-७५ वसन्तगढ़-५२, ८७, १२६-२७, २२० रुक्मिणी-११७ वसन्तपुर-१३६ रूपमण्डन–११, १५७, १६२. १६६ वसु-११२ रेवतगिरि–११७ वसुदेव-११७, १२३ रैदिधी-११७ वसुदेवहिण्डी-१, १५, ४०, ४१, २५३ रोहतक-५२, १२६ वसुनन्दि-८३ रोहिणी-२, ६९, ७१, ७७, ७८, ९६, ११७, १६०, वसुपूज्य–१०५ १७४-७६, २४९, २५२ वसुमति–१४१ वहनि-१९५ लक्ष्मण-११४ वहुरूपी-१९० लक्ष्मणा-१०२ वाग्देवी-२४५ लक्ष्मी-३३, ७१, ८४, ८८-९०, ९५, १०२, २४९, २५१, | वामन-१२५ २५३ | वामा (या वर्मिला)-१२४, १३३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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