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यम-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
पाश एवं पुस्तक का प्रदर्शन लोकप्रिय था। वाहन का चित्रण केवल खजुराहो और देवगढ़ में ही हआ है। राज्य संग्रहालय, लखनऊ में पद्मावती की दो मूर्तियां हैं। इनमें पद्मावती चतुर्मजा और ललितमुद्रा में विराजमान है। एक मूर्ति (जी ३१६. ११ वीं शती ई०) में सात सर्पफणों के छत्र से युक्त पद्मावती पद्म पर आसीन है और उसके तीन सुरक्षित हाथों में पद्म, पप्रकलिका एवं कलश हैं। उपासकों, मालाधरों एवं चामरधारिणो सेविकाओं से वेष्टित पद्मावती के शीर्षभाग में तीन सर्पफणों के छत्र से युक्त पार्श्वनाथ की छोटी मूर्ति उत्कीर्ण है। वाराणसी से मिली दूसरी मूर्ति (जी ७३) में पद्मावती पांच सर्पफणों के छत्र एवं हाथों में अभयमुद्रा, पद्मकलिका, पुस्तिका एवं कलश से युक्त है।
खजुराहो में चतुर्भुजा पद्मावती की तीन मूर्तियां (११ वीं शती ई०) हैं। ये सभी मूर्तियां उत्तरंगों पर उत्कीर्ण हैं। आदिनाथ मन्दिर एवं मन्दिर २२ की दो मूर्तियों में पद्मावती के मस्तक पर पांच सर्पफणों के छत्र प्रदर्शित हैं। दोनों उदाहरणों में वाहन सम्भवतः कुक्कुट है। आदिनाथ मन्दिर की मूर्ति में ललितमुद्रा में विराजमान पद्मावती के करों में अभयमुद्रा, पाश, पद्मकलिका एवं जलपात्र हैं । मन्दिर २२ की स्थानक मूर्ति में यक्षी के दो सुरक्षित हाथों में वरदमुद्रा एवं पद्म हैं । जाडिन संग्रहालय, खजुराहो (१४६७) की तीसरी मूर्ति में ललितमुद्रा में विराजमान पद्मावती सात सर्पफणों के छत्र से युक्त है और उसका वाहन कुक्कुट है (चित्र ५७)। यक्षी के तीन अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा, पाश एवं अंकुश प्रदर्शित हैं । अन्तिम मूर्ति के निरूपण में अपराजितपृच्छा की परम्परा का निर्वाह किया गया है।
देवगढ़ से पद्मावती की द्विभुजी, चतुर्भुजी एवं द्वादशभुजी मूर्तियां मिली हैं ।' उल्लेखनीय है कि पद्मावती के निरूपण में सर्वाधिक स्वरूपगत वैविध्य देवगढ़ की मूर्तियों में ही प्राप्त होता है। चतुर्भुजी एवं द्वादशभुजो मूर्तियां ग्यारहवींबारहवीं शती ई० की और द्विभुजी मूर्तियां बारहवीं शती ई० की हैं। द्विभुजा पद्मावती की दो मूर्तियां हैं, जो क्रमशः मन्दिर १२ (दक्षिणी भाग) एवं १६ के मानस्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं। दोनों उदाहरणों में यक्षी के मस्तक पर तीन सर्पफणों के छत्र हैं । एक मूर्ति में पद्मावती वरदमुद्रा एवं सनालपद्म और दूसरी में पुष्प एवं फल से युक्त है । पद्मावती की चतुर्भुजी मतियां तीन हैं। इनमें ललितमुद्रा में विराजमान पद्मावती पांच सर्प फणों के छत्र से युक्त है। मन्दिर १ के मानस्तम्भ (११ वीं शती ई०) की मूर्ति में कुक्कुट-सर्प पर आरूढ़ यक्षी के तीन अवशिष्ट करों में धनुष, गदा एवं पाश प्रदर्शित हैं। मन्दिर के समीप के दो अन्य मानस्तम्भों (१२ वीं शती ई०) की मूर्तियों में पद्मावती पद्मासन पर आसीन है और उसके हाथों में वरदमुद्रा, पद्य, पद्म एवं जलपात्र हैं। एक उदाहरण में यक्षी के मस्तक के ऊपर पांच सर्पफणों के छत्र वाली जिन मूर्ति भी उत्कीर्ण है। द्वादशभुजा पद्मावती की मूर्ति मन्दिर ११ के समक्ष के मानस्तम्भ (१०५९ ई०) पर बनी है। ललितमद्रा में आसीन पद्मावती का वाहन कुक्कुट-सर्प है। पांच सर्पफणों के छत्र से युक्त यक्षी के करों में वरदमुद्रा. बाण. अंकुश, सनालपद्म, शृंखला, दण्ड, छत्र, वच, सर्प, पाश, धनुष एवं मातुलिंग प्रदर्शित हैं। देवगढ़ की मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि वहां दिगंबर परम्परा के अनुरूप ही पद्मावती के साथ पद्म और कुक्कुट-सर्प दोनों को यक्षी के वाहन के रूप में प्रदर्शित किया गया है । पद्मावती के शीषंभाग में सर्पफणों के छत्र (३ या ५) एवं करों में पद्म, गदा, पाश एवं अंकुश का प्रदर्शन भी लोकप्रिय था । यक्षी के आयुध सामान्यतः परम्परासम्मत हैं।
द्वादशभुजा पद्मावती की एक मूर्ति (११ वीं शती ई०) शहडोल (म० प्र०) से भी मिली है। यह मूर्ति सम्प्रति ठाकुर साहब संग्रह, शहडोल में है (चित्र ५५)। पद्मावती के शीर्षभाग में सात सर्पफणों के छत्र से युक्त पार्श्वनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण है। किरीटमुकुट एवं पांच सर्पफणों के छत्र से युक्त यक्षी पद्म पर ध्यान मुद्रा में विराजमान है । आसन.के नीचे कूर्मवाहन अंकित है। देवी के करों में वरदमुद्रा, खड्ग, परशु, बाण, वज, चक्र (छल्ला), फलक, गदा, अंकुश, धनुष, सपं एवं पद्म प्रदर्शित हैं। पाश्वों में दो नाग-नागी आकृतियां बनी हैं। मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र से मिली ल० दसवीं
१ द्विभुज एवं द्वादशभुज स्वरूपों में पद्मावती का अंकन परम्परासम्मत नहीं है। २ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह ए ७.५३ ३ कूर्मवाहन का प्रदर्शन परम्परा विरुद्ध और सम्भवतः धरण यक्ष के कूर्मवाहन से प्रभावित है।
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