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यक्ष यक्षी - प्रतिमाविज्ञान ]
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गुफा की महावीर मूर्तियों में चतुर्भुजा यक्षी के करों में अभयमुद्रा, अंकुश, पाश एवं फल ( या जलपात्र) प्रदर्शित हैं। वाहन की पहचान सम्भव नहीं है । करंजा (अकोला, महाराष्ट्र) की एक महावीर मूर्ति (ल० ९वीं शती ई०) में चतुर्भुजा यक्षी पुष्प (?), पद्म परशु एवं फल से युक्त है । सेट्टिपोडव ( मदुराई) की एक चतुर्भुजी मूर्ति में केवल दो हाथों के ही आयुध स्पष्ट हैं, जो धनुष और बाण हैं । अन्य उदाहरणों में यक्षी द्विभुजा है । द्विभुजा यक्षी के साथ कभी-कभी सिंहवाहन उत्कीर्णं है । हाथों में पद्म एवं फल ( या पुस्तक) प्रदर्शित हैं ।" विश्लेषण
सम्पूर्ण अध्ययन से स्पष्ट है कि उत्तर भारत में पारम्परिक एवं स्वतन्त्र लक्षणोंवाली सिद्धायिका की मूर्तियां दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य उत्कीर्णं हुईं । उत्तर भारत में सिद्धायिका का पूरी तरह पारम्परिक स्वरूप में अंकन केवल श्वेतांबर स्थलों की तीन मूर्तियों में ही दृष्टिगत होता है । इनमें सिंहवाहना यक्षी के हाथों में अभय -( या वरद - ) मुद्रा, पुस्तक, वीणा एवं फल प्रदर्शित हैं । दिगंबर स्थलों पर केवल सिंहवाहन के प्रदर्शन में ही परम्परा का पालन किया गया है । देवगढ़ एवं बारभुजी गुफा की दो मूर्तियों में दिगंबर परम्परा के अनुरूप पुस्तक भी प्रदर्शित है । मालादेवी मन्दिर की मूर्ति में यक्षी के साथ वीणा का प्रदर्शन श्वेतांबर परम्परा का पालन है । अन्य आयुधों की दृष्टि से दिगंबर स्थलों की सिद्धायिका की मूर्तियां परम्परासम्मत नहीं हैं । दिगंबर स्थलों पर यक्षी का चतुर्भुज स्वरूप में निरूपण और उसके करों में परम्परा से भिन्न आयुधों (खड्ग, खेटक, पद्म, चक्र, शंख) का प्रदर्शन इस बात का संकेत देते हैं कि उन स्थलों पर चतुर्भुजा सिद्धायिका के निरूपण से सम्बन्धित ऐसी परम्परा प्रचलित थी, जो सम्प्रति हमें उपलब्ध नहीं है । सभी क्षेत्रों में यक्षी का द्विभुज और चतुर्भुज रूपों में निरूपण ही लोकप्रिय था । 4
१ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ०७४, ७५; देसाई, पी० बी०, पृ०नि०, पृ० ३८, ५६, ५७ संकलिया, एच० डी०, पू०नि०, पृ० १६१
२ ये मूर्तियां विमलवसही, कैम्बे एवं प्रभासपाटण से मिली हैं ।
३ केवल बारभुजी गुफा की मूर्ति में वाहन गज है ।
५ केवल बारभुजी गुफा की मूर्ति में ही यक्षी विशतिभुज है ।
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४ खजुराहो एवं देवगढ़
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