________________
पक्ष-पक्षी-प्रतिमाविज्ञान 1
२२९
मूर्तियों में दाहिने पाखं में दूसरा पुत्र भी उत्कीर्ण है । स्वतन्त्र मूर्तियों में अम्बिका सामान्यतः दो पाश्र्ववर्ती सेविकाओं से सेवित है जिनकी एक भुजा में चामर या पद्म प्रदर्शित है। साथ ही अभयमुद्रा एवं जलपात्र से युक्त दो पुरुष या स्त्री आकृतियां अंकित हैं । परिकर में सामान्यतः उपासकों, गन्धर्वो एवं उड्डीयमान मालाधरों की आकृतियां बनी हैं। पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (१६०८ ) की एक विशिष्ट अम्बिका मूर्ति (११ वीं शती ई० ) में जिन मूर्तियों के समान ही पीठिका छोरों पर द्विभुज यक्ष और यक्षी भी आमूर्तित हैं । यक्ष अभयमुद्रा एवं धन के थैले और यक्षी अभयमुद्रा एवं जलपात्र से युक्त हैं। शीर्षभाग में पद्म धारण करने वाली कुछ देवियां भी बनी हैं ।
द्विभुजा अम्बिका की तीन मूर्तियां (१० वीं ११ वीं शती ई०) राज्य संग्रहालय, लखनऊ में हैं ।" शीर्षभाग में आम्रवृक्ष एवं जिन आकृति से युक्त अम्बिका सभी उदाहरणों में ललितमुद्रा में विराजमान है। वाहन केव उदाहरणों में उत्कीर्ण है । इनमें यक्षी के करों में आम्रलुम्बि एवं पुत्र प्रदर्शित हैं ।
(ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां - इस क्षेत्र की जिन-संयुक्त मूर्तियों में अम्बिका सर्वदा द्विभुजा है । दसवीं शती ई० के पूर्व की नेमिनाथ की मूर्तियों में अम्बिका के साथ आम्रलुम्बि एवं सिंहवाहन का प्रदर्शन नहीं प्राप्त होता है । पर अम्बिका के साथ पुत्र का प्रदर्शन सातवीं-आठवीं शती ई० में ही प्रारम्भ हो गया था । 3 दसवीं शती ई० के पूर्व की मूर्तियों में आम्रलुम्बि के स्थान पर पुष्प ( या अभयमुद्रा ) प्रदर्शित है ( चित्र २६) । राज्य संग्रहालय, लखनऊ, ग्यारसपुर, देवगढ़ एवं खजुराहो की दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की नेमिनाथ की मूर्तियों में द्विभुजी अम्बिका आम्रलुम्बि एवं पुत्र से युक्त है। जिन संयुक्त मूर्तियों में अम्बिका के साथ सिंहवाहन एवं दूसरा पुत्र सामान्यतः नहीं निरूपित हैं । शीर्ष भाग में आ फल के गुच्छक भी कभी-कभी ही उत्कीर्ण किये गये हैं ।
देवगढ़ के मन्दिर १३ और २४ की दो जिन संयुक्त मूर्तियों (११ वीं शती ई०) में आम्रलुम्बि के स्थान पर अम्बिका के हाथ में आम्रफल ( या फल) प्रदर्शित है। कुछ उदाहरणों ( मन्दिर १२, १३) में दूसरा पुत्र मी उत्कीर्ण है । मन्दिर १२ की चहारदीवारी एवं मन्दिर १५ की मूर्तियों में सिंहवाहन भी बना है। तीन उदाहरणों ( १० वीं - ११ वीं शती ई०) में नेमि के साथ सामान्य लक्षणों वाली द्विभुजा यक्षी भी उत्कीर्ण है । यक्षी अभयमुद्रा (या वरदमुद्रा या पुष्प ) एवं फल (या कलशं) से युक्त है । चार मूर्तियों (११ वीं - १२ वीं शती ई०) में यक्षी चतुर्भुजा है और उसके करों में वरद( या अभय - ) मुद्रा, पद्म, पद्म एवं फल ( या कलश) प्रदर्शित हैं ।
बिहार- उड़ीसा - बंगाल — इस क्षेत्र की स्वतन्त्र मूर्तियों में अम्बिका सदैव द्विभुजा है और आम्रलुम्बि एवं पुत्र से युक्त है । ल० दसवीं शती ई० की एक पालयुगीन मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (६३.९४०) में संगृहीत है । द्विभंग में पद्मासन पर खड़ी अम्बिका का सिंहवाहन आसन के नीचे उत्कीर्ण है । यक्षी के दाहिने हाथ में आम्रलुम्बि है और बायें से वह समीप ही खड़े (निर्वस्त्र ) पुत्र की उंगली पकड़े है। पोट्टासिगीदी (क्योंझर, उड़ीसा) की मूर्ति में सिंहवाहना अम्बिका ललितमुद्रा में विराजमान है और उसकी अवशिष्ट वामभुजा में पुत्र है ।" अलुआरा से प्राप्त एक मूर्ति पटना संग्रहालय (१०६९४ ) में है जिसमें दाहिने पार्श्व में एक पुत्र खड़ा है ।' पक्बीरा ( मानभूम ) की मूर्ति में अवशिष्ट बायें हाथ में पुत्र है ।" अम्बिकानगर (बांकुड़ा) एवं बरकोला से भी सिंहवाहना अम्बिका की दो मूर्तियां मिली हैं /
१ क्रमांक जे ८५३, जे ७९, ८.०.३३४
५ जे ८५३, ८.०.३३४
३ भारत कला भवन,
वाराणसी २१२ ४ राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे ७९२) एवं देवगढ़ की कुछ नेमिनाथ की मूर्तियों में अम्बिका के स्थान पर सामान्य लक्षणों वाली यक्षी भी आमूर्तित है ।
५ जोशी, अर्जुन, 'फर्दर लाइट ऑन दि रिमेन्स ऐट पोट्टासिंगीदी', उ०हि०रि०ज० खं० १०, अं० ४, पृ० ३१-३२
६ प्रसाद, एच०के० 'जैन ब्रोन्जेज़ इन दि पटना म्यूजियम', म०जै०वि०गो० जु०वा०, बम्बई, १९६८, पृ० २८९
७ मित्र, कालीपद, 'नोट्स ऑन टू जैन इमेमेज', ज०बि० उ०रि०सो०, खं० २८, भाग २, पृ० २०३ ८ मित्रा, देबला, 'सम जैन एन्टिक्विटीज फ्राम बांकुड़ा, वेस्ट बंगाल', ज०ए०सो०बं०, खं०२४, अं०२, पृ०१३१-३३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org