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जिन - प्रति माविज्ञान ]
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की ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की ही कुछ मूर्तियों में निरूपित हैं। अधिकांशतः पारखं के साथ सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं जिनके सिरों पर कभी-कभी सर्पफणों के छत्र भी प्रदर्शित हैं । सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी का अंकन ल० दसवीं शती ई० में ही प्रारम्भ हो गया । कुछ उदाहरणों में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका भी हैं । सर्पफणों के छत्रों से युक्त या बिना सर्पफणों वाले स्त्री-पुरुष चामरधरों या चामरधर पुरुष और छत्रधारिणी स्त्री के अंकन आठवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य विशेष लोकप्रिय थे । कुछ मूर्तियों में लटकती जटाएं, नाग- नागी एवं सरस्वती भी अंकित हैं ।
बिहार - उड़ीसा - बंगाल - बंगाल और उड़ीसा में अन्य किसी भी जिन की तुलना में पार्श्व की मूर्तियां अधिक हैं। ल० नवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति उदयगिरि पहाड़ी ( बिहार ) के आधुनिक मन्दिर में प्रतिष्ठित है ।" बांकुड़ा से प्राप्त और भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता में सुरक्षित ल० दसवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति में पीठिका पर सर्प लांछन उत्कीर्ण है । चौबीस परगना (बंगाल) में कान्तावेनिआ से प्राप्त ग्यारहवीं शती ई० की एक कायोत्सर्गं मूर्ति के परिकर में २३ छोटी जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । समान विवरणों वाली दसवीं - ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां बहुलारा के सिद्धेश्वर मन्दिर एवं पारसनाथ (अम्बिकानगर ) में हैं । पारसनाथ से प्राप्त मूर्ति में नाग- नागी भी उत्कीर्ण हैं । 3 अम्बिकानगर के समीप केंदुआग्राम से भी एक कायोत्सर्ग मूर्ति मिली है । मूलनायक के पावों में तीन सर्पफणों की छत्रावली वाली दो नागी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।
ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की दो खड्गासन और दो ध्यानस्थ मूर्तियां अलुआरा से
मिली हैं । ये मूर्तियां सम्प्रति पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं । एक मूर्ति में नवग्रहों एवं एक अन्य में दो नागों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां पोट्टासिंगीदी (क्योंझर ) से मिली हैं। भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता की एक मूर्ति में पार्श्व के समीप छत्र धारण करनेवाली नागी की मूर्ति है ।" परिकर में कुछ मानव, असुर एवं पशुमुख आकृतियां उत्कीर्ण हैं । ये आकृतियां पत्थर एवं खड्ग से पार्श्व पर आक्रमण की मुद्रा में प्रदर्शित हैं । यह सम्भवतः मेघमाली के उपसर्गों का चित्रण है ।
उड़ीसा की नवमुनि, बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की कई मूर्तियां हैं । बारभुजी
गुफा की ध्यानस्थ मूर्ति के आसन पर त्रिफण नाग लांछन उत्कीर्ण है (चित्र ५९ ) । मूर्ति के नीचे पद्मावती यक्षी निरूपित है ।" नवमुनि गुफा की मूर्ति में ध्यानस्थ पार्श्व जटामुकुट से शोभित हैं और उनकी पीठिका पर दो नाग आकृतियां उत्कीर्ण हैं ।" नवमुनि गुफा को दूसरी ध्यानस्थ मूर्ति में भी आसन पर तीन सर्पफणों वाली दो नाग मूर्तियां हैं । नीचे पद्मावती यक्ष की मूर्ति है 19
विश्लेषण — उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में सर्प लांछन तुलनात्मक दृष्टि से अधिक उदाहरणों में उत्कीर्ण है । पार्श्व के यक्ष-यक्षी की मूर्तियां इस क्षेत्र में नहीं उत्कीर्ण हुईं। केवल बारभुजी एवं नवमुनि गुफाओं की मूर्तियों में ही नीचे पद्मावती की मूर्तियां हैं ।
१ आ०स०ई०ए०रि०, १९२५-२६, फलक ६०,
चित्र ई, पृ० ११५
२ बनर्जी, जे० एन०, 'जैन इमेजेज़', दि हिस्ट्री आँच बंगाल, खं० १, ढाका, १९४३, पृ० ४६५
३ मित्रा, देबला, 'सम जैन एन्टिक्विटीज फ्राम बांकुड़ा, वेस्ट बंगाल', ज०ए०सी०बं०, खं०२४, अं०२, पृ० १३३-३४ ४ वही पृ० १३४
५ पटना संग्रहालय ६५३१, ६५३३, १०६७८, १०६७९
६ प्रसाद, एच० के० पू०नि०, पृ० २८१, २८८
७ जोशी, अर्जुन, 'फर्दर लाइट आन दि रिमेन्स ऐट पोट्टासिंगीदी', उ०हि०रि०ज० अं० १०, अं० ४, पृ० ३१ ३२
८ एण्डरसन, जे० पू०नि०, पृ० २१३-१४
,
९ मित्रा, देबला, 'शासन देवीज इन दि खण्डगिरि केव्स', ज०ए०सो०, खं० १, अं० २, पृ० १३३
१० वही, पृ० १२९
११ वही, पृ० १२९
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