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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
मुर्ति-परम्परा
यक्षी की चार स्वतन्त्र मूर्तियां (९वीं-१२वीं शती ई०) मिली हैं। ये मूर्तियां देवगढ़ (मन्दिर १२, ८६२ ई०) एवं बारभुजी गुफा के समूहों एवं मालादेवी मन्दिर (ग्यारसपुर, म० प्र०) और नवमुनि गुफा से मिली हैं। देवगढ़ में वासुपूज्य के साथ 'अभौगरतिण (या अभोगरोहिणी)' नाम की द्विभुजा यक्षी आमूर्तित है ।' यक्षी की दाहिनी भुजा में सर्प और बायीं में लम्बी माला प्रदर्शित हैं। सर्प का प्रदर्शन १३ वी महाविद्या वैरोट्या का प्रभाव हो सकता है। मालादेवी मन्दिर (१० वीं शती ई०) के मण्डोवर की पश्चिमी जंघा की चतुर्भुजा देवी की सम्भावित पहचान गांधारी से की जा सकती है। देवी ललितमद्रा में पद्मासन पर विराजमान है और उसके आसन के नीचे मकर-मख उत्कीर्ण है, जो सम्भवतः वाहन का सूचक है। पीठिका पर एक पंक्ति में नौ घट (नवनिधि के सूचक) भी बने हैं । देवी के तीन अवशिष्ट करों में से दो में पद्म एवं दर्पण हैं और तीसरा ऊपर उठा है ।
नवमुनि गुफा में वासुपूज्य की चतुर्भुजा यक्षी मयूरवाहना है । जटामुकुट से शोभित यक्षी के करों में अभयमुद्रा, मातुलिंग, शक्ति एवं बालक प्रदर्शित हैं । यक्षी की लाक्षणिक विशेषताएं अपारम्परिक और हिन्दू कौमारी से प्रभावित हैं।' बारभुजी गुफा की मूर्ति में अष्टभुजा यक्षी का वाहन पक्षी है। यक्षी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा, मातुलिंग (?), अक्षमाला, नीलोत्पल और बायें हाथों में जलपात्र, शंख पुष्प, सनालपद्म प्रदर्शित हैं। यक्षी का निरूपण परम्परासम्मत नहीं है।
(१३) षण्मुख (या चतुर्मुख) यक्ष शास्त्रीय परम्परा
षण्मुख (या चतुर्मुख) जिन विमलनाथ का यक्ष है । दोनों परम्पराओं में इसका वाहन मयूर है ।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में द्वादशभुज षण्मुख यक्ष का वाहन मयूर है । षण्मुख के दक्षिण करों में फल, चक्र, बाण, खड्ग, पाश एवं अक्षमाला और वाम में नकुल, चक्र, धनुष, फलक, अंकुश एवं अभयमुद्रा का उल्लेख है। अन्य ग्रन्थों में भी यही विशेषताएं वर्णित हैं। पर मन्त्राधिराजकल्प में बाण और पाश के स्थान पर शक्ति और नागपाश का उल्लेख है।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में चतुर्मुख यक्ष द्वादशभुज है और उसका वाहन मयूर है। ग्रन्थ में आयुधों का अनुल्लेख है। प्रतिष्ठासारोद्धार में चतुर्मुख के ऊपर के आठ हाथों में परशु और शेष चार में खड्ग (कौक्षेयक),
१ सभी मूर्तियां दिगंबर स्थलों से मिली हैं। २ जि०३०दे०, पृ० १०३, १०७ ३ आसन के नीचे नौ घटों का चित्रण इस पहचान में बाधक है। ४ मित्रा, देबला, पू०नि, पृ० १२८ ५ राव, टी० ए० गोपीनाथ, पू०नि०, पृ० ३८७-८८ ६ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३१ ७ षण्मुखं यक्षं श्वेतवर्ण शिखिवाहनं द्वादशभुजं फलचक्रबाणखड्गपाशाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणपाणि नकुलचक्रधनुः फलकांकुशा
भययुक्तवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका १८.१३ ८ त्रिश०पु०च० ४.३.१७८-७९; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-विमलस्वामी १९-२०; आचारदिनकर ३४, पृ०१७४ ९ चक्राक्षदामफलशक्तिभुजंगपाशखड्गांकदक्षिणभुजः सितरुक् सुकेकी । मंत्राधिराजकल्प ३.३७ १० विमलस्य जिनेन्द्रस्य नामार्थाभ्यां चतुर्मुखः ।
यक्षोद्वादशदोद्दण्डः सुरूपः शिखिवाहनः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.४१
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