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[ जैन प्रतिमाविज्ञान श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में चतुर्भुज गरुड वराहमुख है और उसका वाहन भी वराह है । गरुड के हाथों में बीजपूरक, पद्म , नकुल और अक्षसूत्र का वर्णन है ।' अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं लक्षणों के उल्लेख हैं। कुछ ग्रन्थों में गरुड का वाहन गज बताया गया है । मन्त्राधिराजकल्प में नकुल के स्थान पर पाश के प्रदर्शन का निर्देश है।४
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में वराह पर आरूढ़ चतुर्भुज गरुड के आयुधों का उल्लेख नहीं है।' प्रतिष्ठासारोद्धार में चतुर्भुज गरुड का वाहन शुक (किटि) है और उसकी ऊपरी भुजाओं में वन एवं चक्र तथा निचली में पद्म एवं फल का वर्णन है । अपराजितपृच्छा में शुकवाहन से युक्त गरुड के करों में पाश, अंकुश, फल एवं वरदमुद्रा का उल्लेख है।
गरुड यक्ष का नाम हिन्दू गरुड से प्रभावित है, पर उसका मूर्ति-विज्ञान-परक स्वरूप स्वतन्त्र है। दिगंबर परम्परा में चक्र का और अपराजितपृच्छा में पाश और अंकुश का उल्लेख सम्भवतः हिन्दू गरुड का प्रभाव है।
दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में वृषभारूढ़ यक्ष को किंपुरुष नाम से सम्बोधित किया गया है। चतुर्भुज यक्ष के ऊपरी करों में चक्र और शक्ति तथा निचली में अभय-और-कटक-मुद्राओं का उल्लेख है । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में गरुड पर आरूढ़ चतुर्भुज यक्ष के करों में वज्र, पद्म, चक्र एवं पद्म (या अभय-या-वरदमुद्रा) के प्रदर्शन का निर्देश है। यक्ष-यक्षी-लक्षण में वराह पर आरूढ़ यक्ष के करों में वज्र, फल, चक्र, एवं पद्म वर्णित हैं। उपर्युक्त से स्पष्ट है कि दक्षिण भारत की श्वेतांबर और उत्तर भारत की दिगंबर परम्परा में गरुड यक्ष के निरूपण में पर्याप्त समानता है। मूर्ति-परम्परा
बी० सी० भट्टाचार्य ने गरुड यक्ष की एक मूर्ति का उल्लेख किया है। यह मूर्ति देवगढ़ दुर्ग के पश्चिमी द्वार के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है । शूकर पर आरूढ़ चतुर्भुज यक्ष के करों में गदा, अक्षमाला, फल एवं सर्प स्थित हैं।
शान्तिनाथ की मूर्तियों में ल० आठवीं शती ई० में ही यक्ष-यक्षी का निरूपण प्रारम्भ हो गया । गुजरात एवं राजस्थान की शान्तिनाथ की मूर्तियों में यक्ष सदैव सर्वानुभूति है। पर उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की मूर्तियों (१० वीं
१ गरुडयक्षं वराहवाहनं क्रोडवदनं श्यामवर्णं चतुर्भुजं बीजपूरकपद्मयुक्तदक्षिणपाणि नकुलकाक्षसूत्रवामपाणिं चेति ।
निर्वाणकलिका १८.१६ २ त्रिश०पु०च०५.५.३७३-७४; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्टः-शान्तिनाथ ४५९-६०, शान्तिनाथमहाकाव्य
(मुनिभद्रकृत) १५.१३१; आचारदिनकर ३४, पृ० १७४; देवतामूर्तिप्रकरण ७.४६ ३ त्रिश०पु०च०, पमानन्दमहाकाव्य एवं शान्तिनाथमहाकाव्य । ४ मन्त्राधिराजकल्प ३.४० ५ गरुडो (नाम) तो यक्षः शान्तिनाथस्य कीर्तितः ।
वराहवाहनः श्यामो चक्रवक्त्रश्चतुर्भुजः ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५२ ६ वक्रानघोऽधस्तनहस्तपद्य फलोन्यहस्तापितवनचक्रः ।
मृगध्वजहित्प्रणतः सपर्यां श्यामः किटिस्थो गरुडोभ्युपैतु ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४४
द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.१६, पृ० ३३६ ७ पाशाङ्कुशलफलवरो गरुडः स्याच्छुकासनः । अपराजितपृच्छा २२१.५२ ८ हिन्दू शिल्पशास्त्रों में गरुड के करों में चक्र, खड्ग, मुसल, अंकुश, शंख, शारंग, गदा एवं पाश आदि के प्रदर्शन
का उल्लेख है। द्रष्टव्य, बनर्जी, जे०एन०, पू०नि०, पृ० ५३२-३३ ९ रामचन्द्रन, टी०एन०, पू०नि०, पृ० २०५-२०६
१० मट्टाचार्य, बी०सी, पू०नि०, पृ० ११०
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