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यक्ष - यक्षी - प्रतिमाविज्ञान ]
मूर्ति- परम्परा
यक्षी की दो स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं । ये मूर्तियां देवगढ़ ( मन्दिर १२,८६२ ई०) एवं बारभुजी गुफा के सामूहिक अंकनों में उत्कीर्ण हैं । देवगढ़ में कुंथुनाथ के साथ चतुर्भुजा यक्षी आमूर्तित है ।" यक्षी के तीन करों में चक्र (छल्ला), पद्म एवं नरमुण्ड प्रदर्शित हैं और एक कर जानु पर स्थित है। यक्षी का वाहन नर है जो देवी के समीप भूमि पर लेटा है। ज्ञातव्य है कि श्वेतांबर परम्परा की टवीं महाविद्या महाकाली को नरवाहना बताया गया है । पर यक्षी के आयुध महाविद्या महाकाली से पूर्णतः भिन्न हैं । अतः नरवाहन और करों में नरमुण्ड तथा चक्र के प्रदर्शन के आधार पर हिन्दू महाकाली या चामुण्डा का प्रभाव स्वीकार करना अधिक उपयुक्त होगा । बारभुजी गुफा की मूर्ति में कुंथु की दशभुजा यक्षी महिषवाना है । यक्षी के दक्षिण करों में वरदमुद्रा, दण्ड, अंकुश (?), चक्र एवं अक्षमाला (?) और वाम में तीन कांटों बाला आयुध (त्रिशूल), चक्र, शंख (?), पद्म एवं कलश प्रदर्शित हैं । 3 राजपूताना संग्रहालय, अजमेर एवं विमल सही (देवकुलिका ३५ ) की कुंथुनाथ की मूर्तियों में यक्षी अम्बिका है ।
(१८) यक्षेन्द्र ( या खेन्द्र ) यक्ष
शास्त्रीय परम्परा
यक्षेन्द्र (या खेन्द्र ) जिन अरनाथ का यक्ष है । दोनों परम्पराओं में षण्मुख, द्वादशभुज एवं त्रिनेत्र यक्षेन्द्र का वाहन शंख बताया गया है ।
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श्वेतांबर परम्परा — निर्वाणकलिका में शंख पर आरूढ़ यक्षेन्द्र के दक्षिण करों में मातुलिंग, बाण, खड्ग, मुद्गर, पाश, अभयमुद्रा और वाम में नकुल, धनुष, खेटक, शूल, अंकुश, अक्षसूत्र का वर्णन है। पद्मानन्दमहाकाव्य में वाम करों में केवल पांच ही आयुधों के उल्लेख हैं जो चक्र, धनुष, शूल, अंकुश एवं अक्षसूत्र हैं ।" मन्त्राधिराजकल्प में यक्ष को वृषभारूढ़ कहा गया है और उसके एक दाहिने हाथ में पाश के स्थान पर शूल का उल्लेख है । आचारदिनकर में खेटक के स्थान पर स्फर मिलता है ।" देवतामूर्तिप्रकरण में यक्षेन्द्र का वाहन शेष है और उसके एक हाथ में बाण के स्थान पर कपाल (शिरस् ) के प्रदर्शन का निर्देश है । "
दिगंबर परम्परा - प्रतिष्ठासारसंग्रह में शंखवाहन से युक्त खेन्द्र के करों के आयुधों का अनुल्लेख है ।" प्रतिष्ठा- ' सारोद्वार में यक्ष के बायें हाथों में धनुष, वज्र, पाश, मुद्गर, अंकुश और वरदमुद्रा वर्णित हैं । दाहिने हाथों के केवल तीन ही आयुधों का उल्लेख है जो बाण, पद्म एवं फल हैं ।" प्रतिष्ठातिलकम् में दक्षिण करों में बाण, पद्म एवं अरुफल के
१ जि०इ० दे०, पृ० १०३
२ राव, टी०ए० गोपीनाथ, पू०नि०, पृ० ३५८, ३८६
३ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३२
४ यक्षेन्द्रयक्षं षण्मुखं त्रिनेत्रं श्यामवर्ण शंखवाहनं द्वादशभुजं मातु लिंगबाणख ड् गमुद्गरपाशाभययुक्तदक्षिणपाणि नकुलधनुश्चर्मफलकशूलांकुशाक्षसूत्रयुक्तवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका १८:१८; द्रष्टव्य, त्रि०श०पु०च० ६.५.९७-९८ ५ पद्मानन्दमहाकाव्य परिशिष्ट- अरनाथ १७ - १८
६ यक्षोऽसितो वृषगतिः शरमातुलिंग शूलाभया सिकलमुद्गरपाणिषट्कः शूलांकुशस्रगहिवैरिधनूंषि बिभ्रद् वामेषु खेटकयुतानि हितानि दद्यात् । मन्त्राधिराजकल्प ३.४२
७ आचारदिनकर ३४, पृ० १७५
९ अरस्यजिननाथस्य खेन्द्रो यक्षस्त्रिलोचनः ।
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८ देवतामूर्तिप्रकरण ७.५०-५१
द्वादशोरुभुजाः श्यामः षण्मुखः शंखवाहनः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५६
१० आरभ्योपरिमात्करेषु कलयन् वामेषु चापं पवि पाशं मुद्गरमंकुशं च वरदः षष्ठेन युंजन् परः । वाणांभोज फलस्त्रगच्छपटली लीलाविलासास्त्रिदृक् षड्वक्रेष्टगरांकभक्तिरसितः खेन्द्रोच्यते शंखगः ॥
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प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४६
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