Book Title: Jain Pratimavigyan
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 232
________________ २१४ [जैन प्रतिमाविज्ञान प्रदर्शन का विधान है।' अपराजितपृच्छा में षड्भुज वरुण के करों में पाश, अंकुश, कामुक, शर, उरग एवं वज्र वणित हैं। यद्यपि वरुण यक्ष का नाम पश्चिम दिशा के दिक्पाल वरुण से ग्रहण किया गया पर उसकी लाक्षणिक विशेषताएं दिक्पाल से भिन्न हैं। वरुण यक्ष का त्रिनेत्र होना और उसके साथ वृषभवाहन और जटामुकुट का प्रदर्शन शिव का प्रभाव है। हाथों में परशु एवं सर्प के प्रदर्शन भी शिव के प्रभाव का ही समर्थन करते हैं । * दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में सप्तमुख एवं चतुर्भुज यक्ष के वाहन का अनुल्लेख है । यक्ष के दक्षिण करों में पुष्प (पद्म) एवं अभयमुद्रा और वाम में कटकमुद्रा एवं खेटक वर्णित हैं । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में पंचमुख एवं अष्टभुज वरुण का वाहन मकर है तथा यक्ष के करों में खड्ग, खेटक, शर, चाप, फल, पाश, वरदमुद्रा एवं दण्ड का उल्लेख है। यक्ष-यक्षी-लक्षण में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के अनुरूप त्रिनेत्र एवं चतुर्भुज यक्ष वृषभारूढ़ और हाथों में खड्ग, वरदमुद्रा, खेटक एवं फल से युक्त है। मूर्ति-परम्परा ओसिया के महावीर मन्दिर (श्वेतांबर) के अर्धमण्डप के पूर्वी छज्जे पर एक द्विभुज देवता की मूर्ति है जिसमें वृषभारूढ़ देवता के दाहिने हाथ में खड्ग है और बांया जानु पर स्थित है । वृषभवाहन एवं खड्ग के आधार पर देवता की पहचान वरुण यक्ष से की जा सकती है । राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे ७७६) एवं विमलवसही (देवकुलिका ११ एवं ३१) की मुनिसुव्रत की तीन मूर्तियों में यक्ष सर्वानुभूति है। (२०) नरदत्ता (या बहुरूपिणी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा नरदत्ता (या बहुरूपिणी) जिन मुनिसुव्रत की यक्षी है । श्वेतांबर परम्परा में चतुर्भुजा नरदत्ता" भद्रासन पर विराजमान है । दिगंबर परम्परा में चतुर्भुजा बहुरूपिणी का वाहन काला नाग है। श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में भद्रासन पर विराजमान यक्षी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं अक्षसूत्र और बायें में बीजपूरक एवं कुम्भ वर्णित हैं । समान लक्षणों का उल्लेख करने वाले अन्य ग्रन्थों में कुम्भ के स्थान पर शूल १ जटाकिरीटोष्टमुखस्त्रिनेत्रो वामान्यखेटासिफलेष्टदानः । कूर्माकनम्रो वरुणो वृषस्थः श्वेतो महाकायउपैतुतृप्तिम् ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४८ द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.२०, पृ० ३३७ २ पाशाङ्कश धनुर्बाण सर्पवज्रा ह्यमांपतिः । अपराजितपृच्छा २२१.५४ ३ अपराजितपृच्छा में वरुण यक्ष को जल का स्वामी (अपांपति) भी बताया गया है । ४ रामचन्द्रन, टी०एन०, पू०नि०, पृ० २०७ ।। ५ निर्वाणकलिका एवं देवतामूर्तिप्रकरण में यक्षी को वरदत्ता, आचारदिनकर एवं प्रवचनसारोद्धार में अच्छुप्ता और मन्त्राधिराजकल्प में सुगन्धि नामों से सम्बोधित किया गया है । ६ वरदत्तां देवीं गौरवर्णा भद्रासनारूढां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुतदक्षिणकरां बीजपूरककुम्भयुतवामहस्तां चेति । निर्वाणकलिका १८.२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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