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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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प्रदर्शित हैं।' तारंगा के अजितनाथ मन्दिर (१२ वीं शती ई०) की भित्तियों पर चतुर्भुज सर्वानुभूति की तीन मूर्तियां हैं। गजवाहन से युक्त यक्ष तीनों उदाहरणों में त्रिभंग में खड़ा है, और वरदमुद्रा, अंकुश, पाश एवं फल से युक्त है । विमलवसही के रंगमण्डप के समीप के वितान पर षड्भुज सर्वानुभूति की एक मूर्ति (१२ वीं शती ई.) है। त्रिभंग में खड़े यक्ष का वाहन गज है और उसके दो करों में धन का थैला तथा शेष में वरदमुद्रा, अंकुश, पाश एवं फल प्रदशित हैं।
उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश-(क) स्वतन्त्र मृतियां-इस क्षेत्र में सर्वानुभूति (या कुबेर) की स्वतन्त्र मूर्तियों का उत्कीर्णन दसवीं शती ई० में प्रारम्भ हआ जिनमें वाहन का अंकन नहीं हुआ है। पर सर्वानुभूति के साथ कभी-कभी दो घट उत्कीर्ण हैं. जो निधि के सूचक हैं। दसवीं शती ई० की एक द्विभुज मूर्ति मालादेवी मन्दिर (ग्यारसपुर) से मिली है, जिसमें ललितमुद्रा में आसीन यक्ष कपाल एवं धन के थैले से युक्त है। चरणों के समीप दो कलश भी उत्कीर्ण हैं ।२ देवगढ़ से यक्ष की दो मूर्तियां (१०वीं-११वीं शती ई०) मिली हैं। एक में द्विभुज यक्ष ललितमुद्रा में विराजमान और फल एवं धन के थैले से यक्त है (चित्र ४९)। दूसरी मूर्ति (मन्दिर ८.११वीं शती ई०) में चतुर्भुज यक्ष त्रिभग में खड़ा और हाथों में वरदमुद्रा, गदा, धन का थैला और जलपात्र धारण किये है। उसके वाम उत्कीर्ण है।
खजुराहो से चार मूर्तियां (१०वी-११वीं शती ई०) मिली हैं जिनमें चतुर्भुज यक्ष ललितमुद्रा में विराजमान है। शान्तिनाथ मन्दिर एवं मन्दिर ३२ का दो मूर्तियों में यक्ष के ऊपरी हाथों में पद्म और निचले में फल और धन का थैला हैं। शेष दो मूर्तियां शान्तिनाथ मन्दिर के समीप के स्तम्भ पर उत्कीर्ण हैं। एक मूर्ति में तीन सुरक्षित हाथों में अभयमुद्रा, पद्म एवं धन का थैला हैं। दूसरी मूर्ति के दो करों में पद्म एवं शेष में अभयमुद्रा और फल प्रदर्शित हैं । चरणों के समीप दो घट भी उत्कीर्ण हैं। सभी उदाहरणों में यक्ष हार, उपवीत, धोती, कुण्डल, किरीटमुकुट एवं अन्य
भषणों से सज्जित है। खजराहो के जैन शिल्प में यक्षों में सर्वानमति सर्वाधिक लोकप्रिय था । पार्श्वनाथ के धरणेन्द्र यक्ष के अतिरिक्त अन्य सभी जिनों के साथ यक्ष के रूप में या तो सर्वानुभूति आमूर्तित है, या फिर यक्ष के एक हाथ में सर्वानुभूति का विशिष्ट आयुध (धन का थैला) प्रदर्शित है।
(ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां-स्वतन्त्र मूर्तियों के साथ ही नेमिनाथ की मूर्तियों (८वीं-१२वीं शती ई०) में भी सर्वानुभूति निरूपित है। राज्य संग्रहालय, लखनऊ की ५ मूर्तियों में यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। तीन उदाहरणों में द्विभुज यक्ष सर्वानुभूति है। यक्ष के करों में अभयमुद्रा (या वरद या फल) एवं धन का थैला हैं। ग्यारहवीं शती ई० की एक मूर्ति (जे ८५८) में यक्ष चतुर्भुज है और उसके करों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं कलश हैं।
देवगढ़ की १९ नेमिनाथ की मूर्तियों (१०वीं-१२वीं शती ई०) में द्विभुज सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं । प्रत्येक उदाहरण में सर्वानुभूति के बायें हाथ में धन का थैला प्रदर्शित है। पर दाहिने हाथ में फल, दण्ड, कपालपात्र एवं अभयमुद्रा में से एक प्रदर्शित है । मन्दिर १२ की चहारदीवारी की एक मूर्ति (११वीं शती ई०) में अम्बिका के समान ही सर्वानुभूति की भी एक भुजा में बालक प्रदर्शित है। सात उदाहरणों में नेमि के साथ सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। ऐसे उदाहरणों में यक्ष के हाथों में अभयमुद्रा (या वरद या गदा) और फल प्रदर्शित हैं। चार मूर्तियों (११वीं-१२वीं शती ई०) में यक्ष-यक्षी चतुर्भुज हैं और उनके हाथों में वरद-(या अभय-) मुद्रा, पद्म, पद्म एवं फल
१देवकुलिका ३ की मूर्ति में यक्ष की दक्षिण भुजाएं भग्न हैं । २ कृष्ण देव, 'मालादेवी टेम्पल ऐट ग्यारसपुर', मजै०वि०गोजुवा०, बम्बई, १९६८, पृ० २६४ ३ जि०इ०दे०, चित्र २३, मूर्ति सं० १३ ४ तिवारी, एम० एन० पी०, 'खजुराहो के जैन शिल्प में कुबेर', जै०सि०भा०, खं० २८, भाग २, दिसम्बर १९७५,
पृ० १-४ ५ जे ७९२, ७९३, ९३६
६ ये मूर्तियां मन्दिर ११, २० और ३० में हैं ।
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