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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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(१७) गन्धर्व यक्ष शास्त्रीय परम्परा
गन्धर्व जिन कुंथुनाथ का यक्ष है। श्वेतांबर परम्परा में गन्धर्व का वाहन हंस और दिगंबर परम्परा में पक्षी (या शुक) है।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में चतुर्भुज गन्धर्व का वाहन हंस है और उसके दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं पाश और बायें में मातुलिंग एवं अंकुश हैं। अन्य ग्रन्थों में भी इन्ही आयुधों के उल्लेख हैं। आचारबिनकर में यक्ष का वाहन सितपत्र है। देवतामूतिप्रकरण में पाश के स्थान पर नागपाश एवं वाहन के रूप में सिंह (?) का
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह के अनुसार चतुर्भुज गन्धर्व पक्षियान पर आरूढ़ है। ग्रन्थ में आयुधों का अनुल्लेख है। प्रतिष्ठासारोद्धार में पक्षियान पर आरूढ़ गन्धर्व के करों में सर्प, पाश, बाण और धनुष वर्णित हैं। अपराजितपच्छा में वाहन शुक है और हाथों के आयुध पद्म, अभयमुद्रा, फल एवं वरदमुद्रा हैं।
जैन गन्धर्व की मूर्तिविज्ञानपरक विशेषताएं जैनों की मौलिक कल्पना है ।
दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर यन्थ में मृग पर आरूढ़ चतुर्भुज यक्ष के दो हाथों में सर्प और शेष में शर (या शूल) एवं चाप प्रदर्शित हैं। अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में रथ पर आरूढ़ चतुर्भुज यक्ष के करों में शर, चाप, पाश एवं पाश का वर्णन है। यक्ष-यक्षी-लक्षण में पक्षियान पर अवस्थित यक्ष के हाथों में शर, चाप, पाश एवं पाश हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि दक्षिण भारत के श्वेतांबर परम्परा के विवरण उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के समान हैं।
गन्धर्व यक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है। कुंथनाथ की दो मूर्तियों में भी पारम्परिक यक्ष के स्थान पर सर्वानुभूति निरूपित है । ये मूर्तियां क्रमशः राजपूताना संग्रहालय, अजमेर एवं विमलवसही की देवकुलिका ३५ में हैं।
१ गन्धर्वयक्ष श्यामवणं हंसवाहनं चतुर्भुजं वरदपाशान्वितदक्षिणभुजं मालिंगांकुशाधिष्ठितवामभुजं चेति ।
निर्वाणकलिका १८.१७ २ त्रिश०पु०च० ६.१.११६-१७; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-कुन्थुनाथ १८-१९; मन्त्राधिराजकल्प ३.४१ ३ आचारदिनकर ३३, पृ० १७५ ।। ४ कुन्थनाथस्य गन्ध (वॉहिंस? वः सिंह) स्थः श्यामवर्णभाक् ।
वरदं नागपाशं चांकुशं वै बीजपूरकम् ॥ देवतामूर्तिप्रकरण ७.४८ ५ कुंथुनाथ जिनेन्द्रस्य यक्षो गन्धर्व संज्ञकः ।।
पक्षियान समारूढ़ः श्यामवर्णः चतुर्भुजः ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५४ ६ सनागपाशोवंकरद्वयोद्यः करद्वयात्तेषुधनुः सुनीलः ।
गन्धर्वयक्षः स्तभकेतुभक्तः पूजामुपैतुश्रितपक्षियानः ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४५
ऊर्द्धद्विहस्तोद्धृतनागपाशमधोद्विहस्तस्थितचापबाणम् । प्रतिष्ठातिलकम् ७.१७, पृ० ३३६ ७ पद्माभयफलवरो गन्धर्वः स्याच्छुकासनः । अपराजितपृच्छा २२१.५२ ८ जैन, शशिकान्त, 'सम कामन एलिमेन्ट्स इन दि जैन ऐण्ड हिन्दू पैन्थिआन्स-I-यक्षज ऐण्ड यक्षिणीज',जैन एण्टि०, __ खं० १८, अं० १, पृ० २१ ९ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० २०६ १० दक्षिण भारत के ग्रन्थों में सर्प के स्थान पर पाश का उल्लेख है।
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