________________
२०२
[ जैन प्रतिमाविज्ञान दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में यक्ष का वाहन मीन (झष) है। ग्रन्थ में आयुधों का अनुल्लेख है।' प्रतिष्ठासारोद्धार में यक्ष के दक्षिण करों में मुद्गर, अक्षमाला, वरदमुद्रा एवं वाम में चक्र, वज, अंकुश का उल्लेख है। अपराजितपृच्छा में यक्ष के करों में पाश, अंकुश, धनुष, बाण, फल एवं वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है।'
किन्नरों को धारणा भारतीय परम्परा में काफी प्राचीन है। जैन परम्परा में किन्नर यक्ष का नाम प्राचीन परम्परा से ग्रहण किया गया 'पर उसकी लाक्षणिक विशेषताएं स्वतन्त्र हैं। ज्ञातव्य है कि जैन यक्षों की सूची में नाग, किन्नर, गरुड एवं गन्धर्व आदि नामों से प्राचीन भारतीय परम्परा के कई देवों को सम्मिलित किया गया, पर मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से उन सभी के स्वतन्त्र रूप निर्धारित किये गये।
दक्षिण भारतीय परम्परा-दोनों परम्परा के ग्रन्थों में षड्भुज यक्ष का वाहन मीन है। दिगंबर ग्रन्थ में यक्ष त्रिमुख है और उसके दक्षिण करों में अक्षमाला, दण्ड, अभयमुद्रा एवं वाम में शक्ति, शूल, माला (या कटक) का वर्णन है । दोनों श्वेतांबर ग्रन्थों में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के अनुरूप यक्ष मुद्गर, चक्र, बज्र, अक्षमाला, वरदमुद्रा एवं अंकुश से युक्त है।
किन्नर यक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है। विमलवसही की देवकुलिका १ की धर्मनाथ की मूर्ति में यक्ष सर्वानुभूति का अंकन है।
(१५) कन्दर्पा (या मानसी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा
कन्दर्पा (या मानसी) जिन धर्मनाथ की यक्षी है। श्वेतांबर परम्परा मे मत्स्यवाहना यक्षी को कन्दर्पा (या पन्नगा) और दिगंबर परम्परा में व्याघ्रवाहना यक्षी को मानसी नामों से सम्बोधित किया गया है। दोनों परम्परा के ग्रन्थों में यक्षी के दो हाथों में अंकुश एवं पद्म के प्रदर्शन का निर्देश है ।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में मत्स्यवाहना कन्दर्पा चतुर्भुजा है जिसके दाहिने हाथों में उत्पल और अंकुश तथा बायें में पद्म और अभयमुद्रा का उल्लेख है। अन्य ग्रन्थों में भी यही आयुध वर्णित हैं। पर मन्त्राधिराजकल्प में तीन करों में पद्म के प्रदर्शन का उल्लेख है।
१ धर्मस्य किन्नरो यक्षस्त्रिमुखो मीनवाहनः ।
षड्भुजः पद्मरागांभो जिनधर्मपरायणः ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५० २ सचक्रवज्रांकुशवामपाणिः समुद्गराक्षालिवरान्यहस्तः । प्रवालवर्णास्त्रिमुखो झषस्थो वनांकभक्तोंचत किन्नरोऽचर्याम् ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४३
प्रतिष्ठातिलकम् ७.१५, पृ० ३३५ ३ किन्नरेशः पाशाङ्कशौ धनुर्बाणी फलंवरः । अपराजितपृच्छा २२१.५१ ४ किन्नर मानव शरीर और अश्वमुख वाले होते हैं। ५ किन्नरों के नेता कुबेर हैं जिन्हें किमीश्वर कहा गया है । द्रष्टव्य, भट्टाचार्य, बी० सी०, पू०नि०, पृ० १०९ ६ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० २०५ ७ कन्दर्पा देवी गौरवर्णां मत्स्यवाहनां चतुर्भुजां उत्पलांकुशयुक्त-दक्षिणकरां पद्माभययुक्तवामहस्तां चेति ।
निर्वाणर्कालका १८.१५ ८ त्रिश०पु०च० ४.५.१९९-२००; पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट-धर्मनाथ २०-२१; आचारदिनकर ३४,पृ० १७७;
देवतामूर्तिप्रकरण ७.४५ ९ मन्त्राधिराजकल्प ३.६०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |