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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
दिगंबर परम्परा – प्रतिष्ठासारसंग्रह में पाताल यक्ष के आयुधों का अनुल्लेख है ।' प्रतिष्ठासारोद्वार में पाताल के शीर्षभाग में तीन सर्पंफणों के छत्र, दक्षिण करों में अंकुश, शूल एवं पद्म और वाम में कषा, हल एवं फल के प्रदर्शन का निर्देश है । अपराजितपृच्छा में पाताल वस्त्र, अंकुश, धनुष, बाण, फल एवं वरदमुद्रा से युक्त है | 3
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यक्ष का नाम (पाताल) और दिगंबर परम्परा में उसका तीन सर्पफणों की छत्रावली से युक्त होना पाताल ( अतल ) लोक के अनन्त देव ( शेषनाग ) का प्रभाव है । दिगंबर परम्परा में सर्पफणों के साथ ही हल का प्रदर्शन बलराम
( हलधर ) का प्रभाव हो सकता है, जिन्हें हिन्दू देवकुल में आदिशेष ( नागराज ) का अवतार माना गया है ।
दक्षिण भारतीय परम्परा — दक्षिण भारत की दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में मकर पर आरूढ़ पाताल यक्ष त्रिमुख और षड्भुज । दिगंबर ग्रन्थ में यक्ष के दक्षिण करों में दण्ड, शूल एवं अभयमुद्रा और वाम में परशु, पाश एवं अंकुश ( या शूल ) का उल्लेख है । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में यक्ष कशा, अंकुश, फल, वरदमुद्रा, त्रिशूल एवं पाश से युक्त है । यक्ष - यक्षी - लक्षण में यक्ष के करों में शर, अंकुश, हल, त्रिशूल, मातुलिंग एवं पद्म वर्णित हैं । यक्ष के मस्तक पर सर्पछत्र का भी उल्लेख है ।" उपर्युक्त से स्पष्ट है कि दक्षिण भारतीय परम्परा यक्ष के निरूपण में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से सहमत है ।
पाताल यक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है । विमलवसही की देवकुलिका ३३ की अनन्तनाथ की मूर्ति में यक्ष के रूप में सर्वानुभूति निरूपित है ।
(१४) अंकुशा (या अनन्तमती) यक्षी
शास्त्रीय परम्परा
अंकुशा ( या अनन्तमती) जिन अनन्तनाथ की यक्षी है । श्वेतांबर परम्परा में चतुर्भुजा अंकुशा ( या वरभृत) पद्मवाना है और दिगंबर परम्परा में चतुर्भुजा अनन्तमती का वाहन हंस है ।
श्वेतांबर परम्परा –निर्वाणकलिका में पद्मवाहना अंकुशा के दाहिने हाथों में खड्ग एवं पाश और बायें में खेटक एवं अंकुश का वर्णन है । अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं लक्षणों के उल्लेख हैं । पर पद्मानन्दमहाकाव्य में अंकुशा द्विभुजा है और उसके करों में फलक और अंकुश वर्णित है ।"
१ अनन्तस्य जिनेन्द्रस्य यक्षः पातालनामकः ।
त्रिमुख: षड्भुजो रक्तः वर्णो मकरवाहनः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.४८
२ पातालकः सशृणिशूलकजापसव्यहस्तः कषाहलफलांकितसव्यपाणिः ।
सेधाध्वजैकशरणो मकराधिरूठो रक्तोर्च्यतां त्रिफणनागशिरास्त्रिवक्रम् ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४२
प्रतिष्ठातिलकम् ७.१४, पृ० ३३५
३ पातालश्च वज्रांकुशौ धनुर्बाणी फलंवरः । अपराजितपृच्छा २२१.५१
४ पाताल एवं अनन्त दोनों नागराज के ही नाम हैं । स्मरणीय है कि पाताल यक्ष के जिन का नाम अनन्तनाथ है ।
५ रामचन्द्रन, टी० एन० पू०नि०, पृ० २०५
६ अंकुशां देवीं गौरवर्णां पद्मवाहनां चतुर्भुजां खड्गपाशय क्तदक्षिणकरां चर्मफलांकुशयुतवामहस्तां चेति । निर्वाणकलिका १८.१४
७ त्रि०श०पु०च० ४.४.२०२-२०३; मन्त्राधिराजकल्प ३.६०; आचारदिनकर ३४, पृ० १७७
८ अंकुशा नाम्ना देवी तु गौरांगी कमलासना ।
दक्षिणे फलकं वामे त्वंकुशं दधती करे | पद्मानन्दमहाकाव्य परिशिष्ट - अनन्त १९-२०
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