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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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के साथ 'वहनि' नाम की सामान्य लक्षणों वाली द्विभुजा यक्षी निरूपित है। यक्षी की दाहिनी भुजा में पद्म है और बायीं जानु पर स्थित है। मालादेवी मन्दिर के मण्डोवर की दक्षिणी जंघा पर चतुर्भुजा गौरी ललितमुद्रा में पद्मासन पर विराजमान है। यक्षी का वाहन मृग है और उसके करों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, पद्म एवं फल प्रदर्शित हैं। बारभुजी गुफा की चतुर्भज मूर्ति में यक्षी का वाहन खण्डित है और उसके हाथों में वरदमुद्रा, अक्षमाला, पुस्तक एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं । उपर्युक्त तीन मूर्तियों में से केवल मालादेवी मन्दिर की मूर्ति में ही पारम्परिक विशेषताएं प्रदर्शित हैं।
(१२) कुमार यक्ष शास्त्रीय परम्परा
कुमार जिन वासुपूज्य का यक्ष है। दोनों परम्पराओं में उसका वाहन हंस है।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में चतुर्भुज कुमार के दक्षिण करों में बीजपूरक एवं बाण और वाम में नकुल एवं धनुष का उल्लेख है। अन्य ग्रन्थों में भी यही लक्षण वर्णित हैं। केवल प्रवचनसारोद्धार में बाण के स्थान पर वीणा मिलता है।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में कुमार के त्रिमुख या षण्मुख होने का उल्लेख है। ग्रन्थ में आयधों का उल्लेख नहीं है । अन्य ग्रन्थों में कुमार को त्रिमुख या षण्मुख नहीं बताया गया है। प्रतिष्ठासारोद्धार में चतुर्भुज कुमार के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं गदा और बायें में धनुष एवं फल वर्णित हैं। प्रतिष्ठातिलकम् में कुमार षड्भुज है और उसके दाहिने हाथों में बाण, गदा एवं वरदमुद्रा और बायें हाथों में धनुष, नकुल एवं मातुलिंग का उल्लेख है। अपराजितपृच्छा में चतुर्भुज कुमार का वाहन मयूर है और उसके करों में धनुष, बाण, फल एवं वरदमुद्रा हैं।'
यद्यपि कुमार नाम हिन्दू कुमार (या कार्तिकेय) से ग्रहण किया गया, पर जैन यक्ष के लिए स्वतन्त्र लक्षणों की कल्पना की गई। जैन देवकुल पर हिन्दू प्रभाव के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जैन आचार्यों ने कभी-कभी जानबूझकर हिन्दू प्रभाव को छिपाने का प्रयास किया है। इस प्रकार के प्रयास में एक जैन देवता के लिए नाम एवं लाक्षणिक विशेषताएं दो अलग-अलग हिन्दू देवों से ग्रहण की गई। उदाहरण के लिए १२ वें यक्ष कुमार का वाहन हंस है, पर १३ वें यक्ष चतुर्मुख का वाहन मयूर है । इसमें स्पष्टतः कुमार के मयूर वाहन को चतुर्मुख (यानी ब्रह्मा) के साथ और चतुर्मुख के हंस वाहन को कुमार के साथ प्रदर्शित किया गया है।
१ जि०३०दे०, पृ० १०७
२ मित्रा, देबला, पू०नि०.१० १३१ ३ कुमारयक्षं श्वेतवर्ण हंसवाहनं चतुर्भुजं मातु लिंगबाणान्वितदक्षिणपाणिं नकुलकधनुर्युक्तवामपाणि चेति । . निर्वाण कलिका १८.१२ ४ त्रिश०पु०च० ४.२.२८६-८७; पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट-वासुपूज्य १७-१८; मन्त्राधिराजकल्प ३.३६;
आचारदिनकर ३४, पृ० १७४ ५ .."बीजपूरकवीणान्वितदक्षिणपाणिद्वयो-प्रवचनसारोद्धार १२.३७३, पृ० ९३ ६ वासुपूज्य जिनेन्द्रस्य यक्षो नाम्ना कुमारिकः ।
त्रिमुखः षण्मुखः श्वेत सुरूपो हंसवाहनः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.३९ ७ शुभ्रो धनुर्बभ्रुफलाढ्यसव्यहस्तोन्यहस्तेषु गदेष्टदानः ।
लुलाय लक्ष्मणप्रणतस्त्रिवक्र: प्रमोदतां हंसचरः कुमारः । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१४० ८ हस्तैथुनुर्बभृफलानि सव्यरन्यैरिघु चारुगदां वरं च । प्रतिधातिलकम् ७.१२, पृ० ३३४ ९ धनुर्बाणफलवराः कुमारः शिखिवाहनः । अपराजितपृच्छा २२१.५० १० पर दिगंबर परम्परा में कभी-कभी कुमार को हिन्दू कुमार के समान ही षण्मुख एवं मयूर वाहन से युक्त भी
निरूपित किया गया है।
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