________________
[ जैन प्रतिमाविज्ञान
है। चक्रेश्वरी के हाथों में वरदमुद्रा, गदा, बाण, छल्ला, छल्ला, वज्र, चाप एवं शंख हैं। बारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां क्रमशः मन्दिर १२ एवं १४ के समक्ष के मानस्तम्भों पर हैं। दोनों में स्थानक-मुद्रा में खड़ो यक्षी के समीप ही गरुड की मूर्तियां बनो हैं। मन्दिर १२ को मूर्ति में यक्षी ने खड्ग, अभयमुद्रा, चक्र, चक्र, खेटक, परशु एवं शंख धारण किया है। मन्दिर १४ की मूर्ति में चक्रेश्वरी दण्ड, खड्ग, अभयमुद्रा, चक्र, चक्र, चक्र, परशु एवं शंख से युक्त है। दशभुजा चक्रेश्वरी की भी केवल एक ही मूर्ति (मन्दिर ११-मानस्तम्भ, १०५९ ई०) है (चित्र ४५)। गरुडवाहना यक्षी के करों में वरदमुद्रा, बाण, गदा, खड्ग, चक्र, चक्र, खेटक, वज्र, धनुष एवं शंख प्रदर्शित हैं।
देवगढ़ में विंशतिभुजा चक्रेश्वरी की तीन मूर्तियां (११वीं शती ई०) हैं । दो मूर्तियां स्थानीय साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित हैं और एक मूर्ति मन्दिर २ के समीप अरक्षित अवस्था में पड़ी है। मन्दिर २ के विरूपित उदाहरण में यक्षी की एकमात्र अवशिष्ट भुजा में चक्र प्रदर्शित है। साहू जैन संग्रहालय की एक मूर्ति में केवल सात भुजाएं ही सुरक्षित हैं, जिनमें से चार में चक्र और शेष तीन में वरदाक्ष, खेटक और शंख प्रदर्शित हैं। एक खण्डित भुजा के ऊपर गदा का भाग अवशिष्ट है। यक्षी के समीप दो उपासकों, चार चामरधारिणी सेविकाओं एवं पद्म धारण करनेवाले पुरुषों की मूर्तियां हैं। शीर्षभाग में एक ध्यानस्थ जिन मूर्ति उत्कीर्ण है जो दो खड्गासन जिन आकृतियों से वेष्टित है। परिकर में दो उड्डीयमान मालाधर युगलों एवं दो चतुर्भुज देवियों की मूर्तियां हैं। दाहिने पावं की तीन सर्पफणों वाली देवी
है। पद्मावती की भुजाओं में वरदमुद्रा, सनालपद्म, सतालपद्म एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं । वाम पार्श्व में जटामुकूट से शोभित सरस्वती निरूपित है। सरस्वती की निचली भुजाओं में वीणा और ऊपरी में सनालपद्म एवं पुस्तक हैं। साह जैन संग्रहालय की दूसरी मति में चक्रेश्वरी की सभी भुजाएं सुरक्षित हैं (चित्र ४६)। इस मति में गरुडवाहन (मानव) चतुर्भुज है । गरुड के नीचे के हाथ नमस्कार-मुद्रा में हैं और ऊपरी चक्रेश्वरी का भार वाहन कर रहे हैं। धम्मिल्ल से शोभित चक्रेश्वरी के ऊपर उठे हुए ऊपरी दो हाथों में एक चक्र तथा शेष में चक्र, खड्ग, तूणीर (?), मुद्गर, चक्र, गदा, अक्षमाला, परशु, वज, शृंखलाबद्ध-घण्टा, खेटक, पताकायुक्त दण्ड, शंख, धनुष, चक्र, सर्प, शूल एवं चक्र प्रदर्शित हैं। अक्षमाला धारण करने वाला हाथ व्याख्यान-मुद्रा में है। चक्रेश्वरी के पावों में दो चामरधारिणी सेविकाएं और शीर्षभाग में उड्डीयमान मालाधरों एवं तीन जिनों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। एक खण्डित विंशतिभुज मूर्ति गंधावल (देवास, म०प्र०) से भी मिली है' जिसके एक हाथ में चक्र एवं परिकर में पांच छोटी जिन मूर्तियां सुरक्षित हैं।।
मतियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि देवगढ़ में चक्रेश्वरी को विशेष प्रतिष्ठा दी गई थी। इसी कारण चक्रेश्वरी के साथ में चामरधारिणी सेविकाओं, उड्डीयमान मालाधरों, गजों एवं एक उदाहरण में पद्मावती और सरस्वती को भी निरूपित किया गया। किन्तु दिगंबर परम्परा के अनुसार चक्रेश्वरी की द्वादशभुज मूर्ति देवगढ़ में नहीं उत्कीर्ण हुई।
(ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां-जिन-संयुक्त मूर्तियों में गरुडवाहना यक्षी अधिकांशतः चतुर्भुजा और चक्र, शंख, गदा एवं अभय-(या वरद-) मुद्रा से युक्त है। बजरामठ (ग्यारसपुर, म० प्र०) की ऋषम मूर्ति (१० वीं शती ई०) में गरुडवाहना यक्षी के करों में यही उपादान प्रदर्शित हैं। खजुराहो की दसवीं से बारहवीं शती ई० की ३२ ऋषभ मूर्तियों में चक्रेश्वरी आमूर्तित है । ज्ञातव्य है कि इन सभी उदाहरणों में यक्ष वृषानन नहीं है, किन्तु यक्षी सर्वदा चक्रेश्वरी ही है। यक्षी का वाहन गरुड सभी उदाहरणों में उत्कीर्ण है। दो उदाहरणों (११ वीं शती ई०) में यक्षी द्विभुजा है और उसके
द्रा एवं चक्र प्रदर्शित हैं। अन्य उदाहरणों में यक्षी चतुर्भुजा है। पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति में यक्षी अभयमुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख से युक्त है । दो उदाहरणों में गदा के स्थान पर पद्म प्रदर्शित है। दस उदाहरणों में
१ गुप्ता, एस० पी० तथा शर्मा, बी० एन०, 'गंधावल और जैन मूर्तियां', अनेकान्त, खं० १९, अं० १-२, पृ० १३० २ शान्तिनाथ संग्रहालय की एक मूर्ति (के ६२) में गरुड नहीं उत्कीर्ण है । ३ के ४४ एवं जाडिन संग्रहालय ४ शान्तिनाथ संग्रहालय, के ४०, पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो, १६६७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org