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[ जैन प्रतिमाविज्ञान सनाल पद्म प्रदर्शित हैं ।' बारभुजी गुफा की दूसरी द्वादशभुज मूर्ति में चक्रेश्वरी के तीन दक्षिण करों में वरदमुद्रा, खड्ग
और चक्र तथा तीन वाम करों में खेटक, घण्टा (3) एवं चक्र प्रदर्शित हैं। चौथी बायीं भुजा वक्षःस्थल के समक्ष है। शेष भुजाएं खण्डित हैं । उपर्युक्त मूर्तियों में अन्यत्र विशेष लोकप्रिय गदा एवं शंख का प्रदर्शन नहीं प्राप्त होता है। गदा एवं शंख के स्थान पर खड्ग और खेटक का प्रदर्शन हुआ है।
दक्षिण भारत-दक्षिण भारत की मूर्तियों में चक्रेश्वरी का गरुडवाहन कभी-कभी नहीं प्रदर्शित है, पर चक्र का प्रदर्शन नियमित था । यक्षी की चतुर्भुज, षड्भुज और द्वादशभुज मूर्तियां मिली हैं। पुडुकोट्टा की दसवीं शती ई० को एक ऋषभ मूर्ति में चतुर्भुज यक्षी के हाथों में फल, चक्र, शंख एवं अभयमुद्रा प्रदर्शित हैं। चतुर्भुजा चक्रेश्वरी की एक स्वतन्त्र मूर्ति (११वीं-१२वीं शती ई०) कम्बड़ पहाड़ी (कर्नाटक) के शान्तिनाथ बस्ती के नवरंग से मिली है। गरुडवाहना यक्षी के करों में अभयमुद्रा, चक्र, चक्र एवं पद्म (या फल) प्रदर्शित हैं । एक चतुर्भुज मूर्ति जिननाथपुर (कर्नाटक) के जैन मन्दिर की दक्षिणी भित्ति पर है। गरुडवाहना चक्रेश्वरी की ऊपरी भुजाओं में चक्र और निचली में पद्म एवं वरदमुद्रा प्रदर्शित हैं। इसी स्थल की एक अन्य मूर्ति में गरुडवाहना चक्रेश्वरी षड्भुज है। यक्षी की भुजाओं में वरदमुद्रा, वज्र, चक्र, चक्र, वज्र एवं पद्म प्रदर्शित हैं। समान विवरणों वाली एक अन्य षड्भुज मुर्ति श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) के मण्डोर बस्ती की ऋषभ मूर्ति में उत्कीर्ण है।
बम्बई के सेण्ट जेवियर कालेज के इण्डियन हिस्टारिकल रिसर्च इन्स्टिट्यूट संग्रहालय की एक ऋषभ मूर्ति में द्वादशभुज चक्रेश्वरी उत्कीर्ण है। त्रिभंग में खड़ी यक्षी के आठ हाथों में चक्र, दो में वज्र एवं एक में पद्म प्रदर्शित हैं । एक भुजा भग्न है। द्वादशभुज यक्षी की समान विवरणों वाली तीन अन्य मूर्तियां कर्नाटक के विभिन्न स्थलों से मिली हैं। द्वादशभुज चक्रेश्वरी की एक मूर्ति एलोरा (महाराष्ट्र) की गुफा ३० में है । गरुडवाहना चक्रेश्वरी की पांच अवशिष्ट दाहिनी भुजाओं में पद्म, चक्र, शंख, चक्र एवं गदा हैं । यक्षी की केवल एक वाम भुजा सुरक्षित है, जिसमें खड्ग है।
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि दक्षिण भारत में चक्रेश्वरी के साथ शंख एवं गदा के स्थान पर बज्र एवं पद्म का प्रदर्शन लोकप्रिय था । द्वादशभूजा चक्रेश्वरी के निरूपण में सामान्यतः दक्षिण भारत के यक्ष-यक्षी-लक्षण के निर्देशों का निर्वाह किया गया है।
विश्लेषण
सम्पूर्ण अध्ययन से स्पष्ट है कि उत्तर भारत में चक्रेश्वरी विशेष लोकप्रिय थी। अम्बिका के बाद चक्रेश्वरी की ही सर्वाधिक मूर्तियां मिली हैं। चक्रेश्वरी की गणना जैन देवकुल की चार प्रमुख यक्षियों में की गई है। अन्य प्रमुख यक्षियां अम्बिका, पद्मावती एवं सिद्धायिका हैं जो क्रमश: नेमि, पावं एवं महावीर की यक्षियां हैं। चक्रेश्वरी का उत्कीर्णन नवीं शती ई० में प्रारम्भ हआ। देवगढ़ के मन्दिर १२ की मूर्ति (८६२ ई०) चक्रेश्वरी की प्राचीनतम मूर्ति है। पर अन्य स्थलों पर चक्रेश्वरी की मूर्तियां दसवीं शती ई० में उत्कीर्ण हुई। चक्रेश्वरी की सर्वाधिक मूर्तियां दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० में बनीं। इसी समय चक्रेश्वरी के स्वरूप में सर्वाधिक मूर्ति विज्ञानपरक विकास हुआ और उसकी द्विभुज से विंशतिभुज मूर्तियां उत्कीर्ण हई। श्वेतांबर स्थलों पर चक्रेश्वरी का शास्त्र-परम्परा से अलग चतुर्भुज स्वरूप में निरूपण ही लोकप्रिय था। स्मरणीय है कि श्वेतांबर ग्रन्थों में चक्रेश्वरी के अष्टभुज एवं द्वादशभुज स्वरूपों का ही उल्लेख है। दिगंबर स्थलों पर
१ वही, पृ० १३०
२ वही, पृ० १३३ ३ बाल सुब्रह्मण्यम, एस० आर० तथा राजू, वी० वी०, 'जैन वेस्टिजेज़ इन दि पुडुकोट्टा स्टेट', क्वा०ज० मै०स्टे०,
खं० २४, अं० ३, पृ० २१३-१४ ४ शाह, यू०पी०, पू०नि०, पृ० २९१
५ वही, पृ० २९२ ६. वही, पृ० २९७-९८
७ मूर्तियों में मातुलिंग के स्थान पर पद्म प्रदर्शित है।
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