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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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हाथों में चक्र, खड्ग, दण्ड, त्रिशूल, अंकुश एवं सत्कीर्तिक (शस्त्र) के प्रदर्शन का निर्देश है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दक्षिण भारत के श्वेतांबर एवं दिगंबर ग्रन्थों के विवरणों में एकरूपता है। साथ ही उन पर उत्तर भारत के दिगंबर ग्रन्थों का प्रभाव भी दृष्टिगत होता है। मूर्ति-परम्परा
त्रिमुख यक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है। सम्भवनाथ की मूर्तियों में भी पारम्परिक यक्ष का उत्कीर्णन नहीं हुआ है। यक्ष का कोई स्वतन्त्र स्वरूप भी नियत नहीं हो सका था। सामान्य लक्षणों वाला यक्ष समान्यतः द्विभुज है । देवगढ़ की छह मूर्तियों (१०वी-१२वीं शती ई०) में द्विभुज यक्ष अभयमुद्रा एवं फल (या कलश) के साथ तथा मन्दिर १५ और ३० की दो चतुर्भुज मूर्तियों (११वीं-१२वीं शती ई०) में वरद-(या अभय-) मुद्रा, गदा, पुस्तक (या पद्म) और फल (या कलश) के साथ निरूपित है। खजुराहो की दो मूर्तियों (११ वीं-१२ वीं शती ई०) में द्विभुज यक्ष के हाथों में पात्र और धन का थैला (या मातुलिंग) हैं।
(३) दुरितारी (या प्रज्ञप्ति) यक्षी शास्त्रीय परम्परा
दुरितारी (या प्रज्ञप्ति) जिन सम्भवनाथ की यक्षी है । श्वेतांबर परम्परा में इसे दुरितारी और दिगंबर परम्परा में प्रज्ञप्ति नामों से सम्बोधित किया गया है। श्वेतांबर परम्परा में यक्षी चतुर्भुजा और दिगंबर परम्परा में षड्भुजा है।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में मेषवाहना दुरितारी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा और अक्षमाला तथा बायें में फल और अभयमुद्रा हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तथा पमानन्दमहाकाव्य में फल के स्थान पर सर्प का उल्लेख है। परवर्ती ग्रन्थों में यक्षी के वाहन के सन्दर्भ में पर्याप्त भिन्नता प्राप्त होती है । पद्मानन्दमहाकाव्य में वाहन के रूप में छाग (अज), मन्त्राधिराजकल्प में मयूर और देवतामूर्तिप्रकरण में महिष' का उल्लेख है।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में षड्भुजा यक्षी का वाहन पक्षी है। ग्रन्थ में प्रज्ञप्ति की केवल चार ही भुजाओं के आयुधों-अर्द्धन्दु, परशु, फल एवं वरदमुद्रा-का उल्लेख है । प्रतिष्ठासारोद्धार में पक्षीवाहना प्रज्ञप्ति के करों
१ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० १९८ २ केवल देवगढ़ की दो मूर्तियों में यक्ष चतुर्भज और स्वतन्त्र लक्षणों वाला है। ३ मन्दिर १७ और १९ की दो मूर्तियों (११ वीं शती ई०) में यक्ष की दाहिनी भुजा में अभयमुद्रा के स्थान पर
गदा प्रदर्शित है। ४ पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (१७१५) एवं मन्दिर १६ ५ ""दुरितारिदेवी गौरवर्णा मेषवाहनां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणकरां फलाभयान्वितवामकरां चेति ।। निर्वाणकलिका १८.३
अचारदिनकर में अक्षमाला के स्थान पर मुक्तामाला का उल्लेख है (३४, पृ० १७६)। ६ दक्षिणाभ्यांभुजाभ्यां तु वरदेनाऽक्षसूत्रिणा ।
वामाभ्यां शोभमाना तु फणिनाऽमयदेन च ।। त्रिश.पु०च० ३.१.३८८ ७ पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट-सम्भवनाथचरित्र १९-२० ८ देवी तुषारगिरिसोदरदेहकान्तिर्दद्यात् सुखं शिखिगतिः सततं परीताः । मंत्राधिराजकल्प ३.५३ ९ दुरितारिगौरवर्णा यक्षिणी महिषासना । देवतामूर्तिप्रकरण ७.२३ १० प्रज्ञप्तिर्देवता श्वेता षड्भुजापक्षिवाहना। अर्द्धन्दुपरशुं धत्ते फलाश्रीष्टावरप्रदा । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.२०
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