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मूर्ति-परम्परा
पुरुषदत्ता की केवल दो स्वतन्त्र मूर्तियां मध्य प्रदेश में ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर तथा उड़ीसा में बारभुजी गुफा से मिली हैं । मालादेवी मन्दिर की मूर्ति (१०वीं शती ई०) मण्डप की दक्षिणी जंघा पर है जिसमें पुरुषदत्ता पद्मासन पर ललितमुद्रा में विराजमान है और उसका गजवाहन आसन के नीचे उत्कीर्ण है । चतुर्भुजा यक्षी के करों में खड्ग, चक्र, खेटक और शंख प्रदर्शित हैं । गजवाहन एवं चक्र के आधार पर देवी की पहचान पुरुषदत्ता से की गई है। बारभुजी गुफा की मूर्ति में यक्षी दशभुजा है और उसका वाहन मकर है। यक्षी के अवशिष्ट दाहिने हाथों में वरदमुद्रा, चक्र, शूल और खड्ग तथा बायें हाथों में पाश, फलक, हल, मुद्गर और पद्म हैं । " खजुराहो की दो सुमतिनाथ की मूर्तियों में द्विभुजा यक्षी सामान्य लक्षणों वाली है। यक्षी के करों में अभयमुद्रा (या पुष्प) और फल प्रदर्शित हैं । विमलवसही की सुमतिनाथ की मूर्ति में अम्बिका निरूपित है ।
[ जैन प्रतिमाविज्ञान
(६) कुसुम यक्ष
शास्त्रीय परम्परा
कुसुम (या पुष्प) जिन पद्मप्रभ का यक्ष है । दोनों परम्पराओं में चतुर्भुज यक्ष का वाहन मृग बताया गया है। यक्ष के कुसुम और पुष्प नाम निश्चित ही जिन पद्मप्रभ के नाम से प्रभावित हैं ।
श्वेतांबर परम्परा -- निर्वाणकलिका में मृग पर आरूढ़ कुसुम यक्ष के दाहिने हाथों में फल और अभयमुद्रा एवं बायें हाथों में नकुल और अक्षमाला का उल्लेख है । अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं लक्षणों के उल्लेख हैं 13 केवल मन्त्राधिराजकल्प एवं आचारदिनकर में वाहन क्रमशः मयूर और अश्व बताया गया है । ४
दिगंबर परम्परा -- प्रतिष्ठासारसंग्रह में यक्ष पुष्प मृगवाहन वाला और द्विभुज है ।" अपराजितपृच्छा में भी यक्ष द्विभुज तथा मृग पर संस्थित है और उसके करों में गदा और अक्षमाला का उल्लेख है । प्रतिष्ठासारोद्धार में चतुर्भुज यक्ष के ध्यान में उसकी दाहिनी भुजाओं में शूल (कुन्त) और मुद्रा तथा बायीं में खेटक और अभयमुद्रा का वर्णन है । " प्रतिष्ठातिलकम में दोनों वाम करों में खेटक के प्रदर्शन का विधान है ।"
दक्षिण भारतीय परम्परा - दिगंबर ग्रन्थ में वृषभारूढ़ यक्ष चतुर्भुज है । उसकी ऊपरी भुजाओं में शूल एवं खेटक और निचली में अभय एवं कटक मुद्राएं हैं। श्वेतांबर ग्रन्थों में मृगवाहन से युक्त चतुर्भुज यक्ष के करों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, शूल एवं फलक का वर्णन है ।" श्वेतांबर ग्रन्थों के विवरण उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से प्रभावित हैं । कुसुम यक्ष की एक भी मूर्ति नहीं मिली है ।
१ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३०
२ कुसुमंयक्षं नीलवर्णं कुरंगवाहनं चतुर्भुजं फलाभययुक्तदक्षिणपाणि नकुलका सूत्रयुक्तवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका १८.६
३ त्रि००पु०च० ३.४.१८० - ८१; पद्मानन्दमहाकान्य: परिशिष्ट- पद्मप्रभ १६-१७
४ रम्भादभाभवपुरेषकुमारयानो यक्षः फलाभयपुरोगभुजः पुनातु ।
बभ्रुवक्षदामयुतवामकरस्तु
|| मन्त्राधिराजकल्प ३.३१ नीलस्तुरंगगमनश्च चतुर्भुजाढयः स्फूर्जत्फला भयसुदक्षिणपाणि युग्मः ।
बभ्राक्ष सूत्रयुतवामकर द्वयश्च
|| आचारदिनकर ३४, पृ० १७४
५ पद्मप्रभजिनेन्द्रस्य यक्षो हरिणवाहनः ।
द्विभुजः पुष्पनामामौ श्यामवर्णः प्रकीर्तितः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.२७
६ कुसुमाख्यौ गदाक्षौ च द्विभुजो मृगसंस्थितः । अपराजितपुच्छा २२१.४७
७ मृगारूहं कुन्तकरापसव्यकरं सखेटाभयसव्यहस्तम् । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१३४
८ खेटोभोद्भासित सव्यहस्तं कुन्तेष्टदानस्फुरितान्यपाणिम् । प्रतिष्ठातिलकम् ७.६, पृ० ३३३ ९ रामचन्द्रन, टी० एन० पु०नि०, पृ० २००
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