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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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में सिंहवाहन उत्कीर्ण है। सुमालिनो का लाक्षणिक स्वरूप निश्चित ही १६ वी महाविद्या महामानसी से प्रभावित है।' बारभुजी गुफा की मूर्ति में सिंहवाहना यक्षी द्वादशभुजा है । यक्षी की दाहिनी भुजाओं में वरदमुद्रा, कृपाण, चक्र, बाण, गदा (?) एवं खड्ग और बायीं में वरदमुद्रा, खेटक, धनुष, शंख, पाश एवं घण्ट प्रदर्शित हैं। सिंहवाहन के अतिरिक्त मूर्ति की अन्य विशेषताएं सामान्यतः दिगंबर ग्रन्थों से मेल खाती हैं।
जिन-संयक्त मूर्तियां (९ वीं-१२ वीं शती ई०) कौशाम्बी, देवगढ़, खजुराहो, एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ में हैं। इनमें अधिकांशतः द्विभुजा यक्षी सामान्य लक्षणों वाली है। यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा (या पुष्प) और फल (या कलश या पुष्प) प्रदर्शित हैं। देवगढ़ (मन्दिर २०, २१) एवं खजुराहो (मन्दिर ३२) की तीन चन्द्रप्रभ मूर्तियों में यक्षी चतर्भजा है। यक्षी के दो हाथों में पद्म एवं पुस्तक, और शेष दो में अभयमुद्रा, कलश एवं फल में से कोई दो प्रदर्शित हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि जिन-संयुक्त मूर्तियों में भी यक्षी को पारम्परिक या स्वतन्त्र स्वरूप में अभिव्यक्ति नहीं मिली।
(९) अजित यक्ष शास्त्रीय परम्परा
अजित जिन सुविधिनाथ (या पुष्पदन्त) का यक्ष है । दोनों परम्पराओं में चतुर्भुज यक्ष का वाहन कूर्म है ।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाण कलिका में चतुर्भुज अजित के दक्षिण करों में मातुलिंग एवं अक्षसूत्र और वाम में नकल एवं शल का वर्णन है। अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं आयुधों के उल्लेख हैं। पर मन्त्राधिराजकल्प में अक्षसूत्र के स्थान पर अभयमुद्रा और आचारदिनकर में शूल के स्थान पर अतुल रत्नराशि के प्रदर्शन के निर्देश हैं ।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में कूर्म पर आरूढ़ अजित के हाथों में फल, अक्षसूत्र, शक्ति एवं वरदमुद्रा वर्णित हैं।" परवर्ती ग्रन्थों में भी इन्हीं आयुधों के उल्लेख हैं। उपर्युक्त से स्पष्ट है कि दिगंबर परम्परा श्वेतांबर परम्परा की अनुगामिनी है । नकुल के स्थान पर वरदमुद्रा का उल्लेख दिगंबर परम्परा की नवीनता है ।
दक्षिण भारतीय परम्परा-दोनों परम्परा के ग्रन्थों में कूर्म पर आरूढ़ अजित चतुर्भुज है। दिगंबर ग्रन्थ में यक्ष के दाहिने हाथों में अक्षमाला एवं अभयमुद्रा और बायें में शूल एवं फल का उल्लेख है। अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में यक्ष के हाथों में कशा, दण्ड, त्रिशूल एवं परशु के प्रदर्शन का विधान है । यक्ष-यक्षी-लक्षण में फल, अक्षसूत्र, त्रिशूल एवं वरदमदा का उल्लेख है। दोनों परम्पराओं के विवरण उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से प्रभावित प्रतीत होते हैं।
अजित यक्ष की एक भी स्वतन्त्र या जिन-संयुक्त मूर्ति नहीं मिली है।
१ श्वेतांबर परम्परा में सिंहवाहना महामानसी के मुख्य आयुध खड्ग एवं खेटक हैं । २ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३१ ३ अजितयक्षं श्वेतवर्णं कूर्मवाहनं चतुर्भुजं मातुलिंगाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणपाणिं नकुलकुन्तान्वितवामपाणि चेति ।
निर्वाणकलिका १८.९; द्रष्टव्य, त्रि०श०पु०च० ३.७.१३८-३९ ४ मन्त्राधिराजकल्प ३.३३; आचारदिनकर ३४, पृ० १७४ ५ अजितः पुष्पदन्तस्य यक्षः श्वेतश्चतुर्भुजः । फलाक्षसूत्रशक्त्याढ्यंवरदः कूर्मवाहनः । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.३३ द्रष्टव्य, प्रतिष्ठासारोद्धारः ३.१३७, प्रतिष्ठातिलकम् ७.९, पृ० ३३३; अपराजितपृच्छा २२१.४८ ६ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० २०१ ७ केवल शक्ति के स्थान पर त्रिशूल का उल्लेख है ।
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