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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
देवकुलिका २५), प्रभास - पाटण एवं कैम्बे' से मिली हैं । इनमें गम्डवाहना यक्षी के दो हाथों में चक्र एवं शेष दो में शंख (या वज्र) एवं वरद - (या अभय - ) मुद्रा प्रदर्शित हैं । कुम्भारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों ( ११वीं शती ई०) के वितानों के ऋषभ के जीवनदृश्यों में भी चतुर्भुजा चक्रेश्वरी की ललितमुद्रा में दो मूर्तियां हैं। गरुडवाहन केवल शान्तिनाथ मन्दिर की मूर्ति में ही उत्कीर्ण है, जहां यक्षी के हाथों में वरदमुद्रा, चक्र, चक्र एवं शंख प्रदर्शित हैं ( चित्र १४ ) । महावीर मन्दिर की मूर्ति में यक्षी वरदमुद्रा, गदा, सनालपद्म एवं शंख (?) से युक्त है ( चित्र १३) । लेख में यक्षी को 'वैष्णवी देवी' कहा गया है ।
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि गुजरात एवं राजस्थान में ल० दसवीं शती ई० में चक्रेश्वरी की मूर्तियों का उत्कीर्णन प्रारम्भ हुआ । इनमें चक्रेश्वरी अधिकांशतः चतुर्भुजा है । 3 चक्रेश्वरी के साथ गरुडवाहन और चक्र एवं शंख का प्रदर्शन नियमित था ।
उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश (क) स्वतन्त्र मूर्तियां - चक्रेश्वरी की प्राचीनतम स्वतन्त्र मूर्ति इसी क्षेत्र से मिली है । त्रिभंग में खड़ी यह चतुर्भुज मूर्ति देवगढ़ के मन्दिर १२ (८६२ ई०) की भित्ति पर है । लेख में देवी को 'चक्रेश्वरी' कहा गया है । यक्षी के चारों हाथों में चक्र हैं। देवी का गरुडवाहन दाहिने पार्श्व में नमस्कार - मुद्रा में खड़ा है । ल० दसवीं शती ई० की एक चतुर्भुज मूर्ति धुबेला राज्य संग्रहालय, नवगांव में भी सुरक्षित है । गरुडवाहना यक्षी के करों में वरदमुद्रा, चक्र, चक्र एवं शंख प्रदर्शित हैं । किरीटमुकुट से शोभित यक्षी के शीर्षभाग में एक लघु जिन आकृति उत्कीर्ण है ।" समान विवरणों वाली दसवीं शती ई० की एक अन्य चतुर्भुज मूर्ति बिल्हारी (जबलपुर) से मिली है ।
. दसवीं शती ई० में ही चक्रेश्वरी की चार से अधिक भुजाओं वाली मूर्तियां मी उत्कीर्ण हुईं । दो अष्टभुज मूर्तियां ( १०वीं शती ई०) ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर के शिखर पर उत्कीर्ण । दोनों उदाहरणों में गरुडवाहना यक्षी ललितमुद्रा में विराजमान है । दक्षिण शिखर की मूर्ति में यक्षी के सुरक्षित हाथों में छल्ला, वज्र, चक्र, चक्र, चक्र और शंख प्रदर्शित हैं । उत्तरी शिखर की दूसरी मूर्ति में यक्षी के अवशिष्ट करों में खड्ग, आम्रलुम्बि (?), चक्र, खेटक, शंख और गदा हैं । दसवीं शती ई० की एक दशभुजा मूर्ति पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा ( डी ६) में है ( चित्र ४४ ) । समभंग में खड़ी चक्रेश्वरी का गरुडवाहन पक्षी रूप में आसन के नीचे उत्कीर्ण है । यक्षी के नौ सुरक्षित करों में चक्र हैं। शीर्ष भाग में एक लघु जिन आकृति एवं पार्श्वो में दो स्त्री सेविकाएं आमूर्तित हैं। राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सिरोनी खुर्द (ललितपुर) से मिली दसवीं शती ई० की एक दशभुजा मूर्ति (जे ८८३ ) है । किरीटमुकुट से शोभित गरुडवाहना चक्रेश्वरी के नौ सुरक्षित हाथों में व्याख्यान-मुद्रा, पद्म, खड्ग, तूणीर, चक्र, घण्टा, चक्र, पद्म एवं चाप प्रदर्शित हैं। ऊपरी भाग में उड्डीयमान आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं |
खजुराहो से चक्रेश्वरी की ग्यारहवीं शती ई० की चार स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं । किरीटमुकुट से शोभित गरुडवाहना यक्षी एक उदाहरण में षड्भुज और शेष तीन में चतुर्भुज है । मन्दिर २७ ( के २७.५० ) की षड्भुज मूर्ति में यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा, गदा, छल्ला, चक्र, पद्म एवं शंख प्रदर्शित हैं। दो चतुर्भुज मूर्तियों में चक्रेश्वरी अभयमुद्रा, गदा,
१ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ० २८०-८१
२ विमल सही के गर्भगृह की मूर्ति में वरदमुद्रा के स्थान पर वरदाक्ष प्रदर्शित है ।
३ सेवड़ी के महावीर मन्दिर की मूर्ति में यक्षी द्विभुजा और राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (६७.१५२) एवं लूणवसही की मूर्तियों में चतुर्भुजा है ।
४ स्मरणीय है । कि यक्षी की चारों भुजाओं में चक्र का प्रदर्शन देवी पर महाविद्या अप्रतिचक्रा का स्पष्ट प्रभाव दरशाता है ।
५ दीक्षित, एस० के०, ए गाईड टू दि स्टेट म्यूजियम धुबेला (नवगांव), विन्ध्यप्रदेश, नवगांव, १९५७, पृ० १६-१७ ६ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्रसंग्रह १०४.२
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