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जिन - प्रतिमाविज्ञान ]
दूसरे वर्ग की ल० आठवीं शती ई० की एक मूर्ति पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा ( बी ६५ ) में है । चारों जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं । लटकती जटाओं, सप्तसर्प फणों की छत्रावली एवं सर्वानुभूति-अम्बिका की आकृतियों के आधार पर तीन जिनों की पहचान क्रमशः ऋषभ, पार्श्व एवं नेमि से सम्भव है । दूसरे वर्ग की सर्वाधिक मूर्तियां (१०वीं - १२ वीं शती ई०) देवगढ़ में हैं ।' अधिकांश मूर्तियों में जिन कायोत्सर्ग में खड़े हैं। मूर्तियों के ऊपरी भाग सामान्यतः शिखर के रूप में निर्मित हैं । जिनों के साथ सिंहासन, चामरधर, त्रिछत्र, दुन्दुभिवादक, उड्डीयमान मालाधर, गज एवं अशोक वृक्ष की पत्तियां भी उत्कीर्ण हैं । ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियों में चारों जिनों के साथ यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं। दोनों मूर्तियां मन्दिर १२ की चहारदीवारी के मुख्य प्रवेश द्वार के समीप हैं। इनमें केवल ऋषभ एवं पार्श्व की ही पहचान स्पष्ट है । देवगढ़ की अधिकांश मूर्तियों में केवल ऋषभ एवं पारथं (या सुपार्श्व ) की पहचान सम्भव है । सभी जिनों के साथ लांछन केवल कुछ ही उदाहरणों में उत्कीर्ण हैं । मन्दिर २६ के समीप की एक मूर्ति (११ वीं शती ई०) में ध्यानमुद्रा में विराजमान जिन वृषभ, कपि, शशि एवं मृग लांछनों से युक्त हैं। इस प्रकार यह ऋषभ, अभिनन्दन, चन्द्रप्रभ एवं शान्ति की चोखी है ।
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राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सरायघाट (अलीगढ़) और बटेश्वर (आगरा) से मिली दसवीं शती ई० की दो कायोत्सर्गं मूर्तियां (जे ८१३, जी १४१) सुरक्षित हैं। इनमें केवल ऋषभ और पार्श्व की ही पहचान सम्भव है । एक मूर्ति में आठ ग्रहों की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ऐसी ही एक मूर्ति शहडोल (म० प्र०) से भी मिली है । इसमें जिन आकृतियां ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। एक मूर्ति अहाड़ (टीकमगढ़, म० प्र०; ११ वीं शती ई०) से मिली है (चित्र ६७ ) । खजुराहो से केवल एक ही मूर्ति (११ वीं शती ई०) मिली है । यह मूर्ति पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो ( १५८८) में । इसमें सभो जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। जिनों में केवल ऋषभ एवं पार की ही पहचान सम्भव है । प्रत्येक जिन मूर्ति के परिकर में १२ लघु जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं । इस प्रकार मुख्य जिनों सहिन इस चौमुखी में कुल ५२ जिन आकृतियां हैं । "
बिहार - उड़ीसा - बंगाल - बिहार और बंगाल से केवल दूसरे वर्ग की ही मूर्तियां मिली हैं । उड़ीसा से मिली किसी मूर्ति की जानकारी हमें नहीं है । बंगाल में जिन चौमुखी मूर्तियों (१० वीं - १२ वीं शती ई०) का उत्कीर्णन विशेष लोकप्रिय था । इस क्षेत्र की सभी मूर्तियों में जिन निर्वस्त्र हैं और कायोत्सर्ग - मुद्रा में खड़े हैं। इस क्षेत्र की चौमुखी मूर्तियों में केवल ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, चन्द्रप्रभ, शान्ति, कुंथु, पार्श्व एवं महावीर की ही मूर्तियां उत्कीर्ण हुई । राजगिर के सोनभण्डार गुफा की ल० आठवीं शती ई० की एक मूर्ति में जिनों के लांछन पीठिका के धर्मचक्र के दोनों ओर उत्कीर्ण हैं । इस मूर्ति में वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम चार जिन, ऋषभ, अजित, सम्भव एवं अभिनन्दन, आमूर्तित हैं। दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की सतदेउलिया (बर्दवान) से मिली एक मूर्ति आशुतोष संग्रहालय, कलकत्ता में सुरक्षित है ।" मूर्ति का ऊपरी भाग शिखर के रूप में बना है। चारों दिशाओं में ऋषभ, चन्द्रप्रभ, पार्श्व एवं महावीर की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । बंगाल के विभिन्न स्थलों से प्राप्त दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की कई मूर्तियां स्टेट
१ देवगढ़ में २५ से अधिक मूर्तियां हैं। अधिकांश मूर्तियां मन्दिर १२ की चहारदीवारी पर हैं ।
२ मन्दिर १२ की एक मूर्ति में ऋषभ एवं शान्ति की पहचान सम्भव है ।
३ मथुरा संग्रहालय की एक मूर्ति ( बी ६६) में भी नवग्रहों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।
४ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह १०१.७१, १०१.७३
५ दिगंबर परम्परा के नन्दीश्वर द्वीप पट्ट पर ५२ जिन आकृतियां उत्कीर्ण होती हैं- द्रष्टव्य, स्ट०जे०आ०, पृ०१२०
६ विस्तार के लिए द्रष्टव्य, जै०क०स्था०, खं० २, पृ० २६७-७५
७ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, राजगिर, पृ० २८, आर्किअलाजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, दिल्ली, चित्रसंग्रह १४३०.५५ ८ सरकार, शिवशंकर, 'आन सम जैन इमेजेज फ्राम बंगाल', माडर्न रिव्यू, खं० १०६, अं० २, पृ० १३१
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