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[ जैन प्रतिभाविज्ञान
२४ - यक्षियां - चक्रेश्वरी ( या अप्रतिचक्रा), ' अजिता ' ( रोहिणी - दिगंबर), दुरितारी (प्रज्ञप्ति - दिगंबर), कालिका (वज्रशृंखला - दिगंबर), महाकाली ( पुरुषदत्ता दिगंबर), " अच्युता ( मनोवेगा-दिगंबर), शान्ता (काली - दिगंबर), भृकुटि ( ज्वालामालिनी - दिगंबर), सुतारा ( महाकाली - दिगंबर), अशोका (मानवी - दिगंबर), मानवी ( गौरी - दिगंबर), चण्डा' ( गान्धारी - दिगंबर), विदिता (वैरोटी - दिगंबर), अंकुशा ११ (अनन्तमती - दिगंबर), कन्दर्पा १२ ( मानसी), निर्वाणी ( महामानसी - दिगंबर), बला 3 ( जया - दिगंबर), धारणी १४ ( तारावती " दिगंबर), वैरोट्या ६ ( अपराजिता - दिगंबर), नरदत्ता १७ ( बहुरूपिणी - दिगंबर), गान्धारी " ( चामुण्डा - दिगंबर), अम्बिका ( या आम्रा या कुष्माण्डिनी), पद्मावती एवं सिद्धायिका ( या सिद्धायिनी ) २४ यक्षियां हैं । २०
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प्रतिमा निरूपण सम्बन्धी ग्रन्थों में अधिकांश यक्ष एवं यक्षी चार भुजाओं वाले हैं । दिगंबर परम्परा में अम्बिका एवं सिद्धायिका यक्षियों को द्विभुज बताया गया है । चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी, मानसी एवं पद्मावती यक्षियां छह या अधिक भुजाओं वाली हैं । यक्षियों की तुलना में यक्ष अधिक उदाहरणों में बहुभुज (६ से १२ भुजाओं वाले ) हैं । बहुभुज यक्षों में महायक्ष, त्रिमुख, ब्रह्म, कुमार, चतुर्मुख, षण्मुख, पाताल, किन्नर, यक्षेन्द्र, कुबेर, वरुण, भृकुटि एवं गोमेध मुख्य हैं। केवल मातंग यक्ष द्विभुज है । अधिकांश यक्ष और यक्षियों की दो भुजाओं में अभय - ( या वरद - ) मुद्रा एवं फल २१ ( या अक्षमाला या जलपात्र ) प्रदर्शित हैं ।
टी० एन० रामचन्द्रन ने अपनी पुस्तक में दक्षिण भारत के तीन ग्रन्थों के आधार पर यक्ष-यक्षी युगलों का प्रतिमा निरूपण किया है । २२ एक ग्रन्थ दिगंबर परम्परा का है और दो अन्य श्वेतांबर परम्परा के हैं। श्वेतांबर परम्परा के एक ग्रन्थ का नाम यक्ष-यक्षी-लक्षण है ।
मूर्तिगत साक्ष्य
ग्रन्थों में २४ यक्ष और यक्षियों की लाक्षणिक विशेषताएं ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० में निर्धारित हुईं । पर शिल्प में ल० दसवीं शती ई० में ही ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व एवं महावीर के साथ सर्वानुभूति एवं अम्बिका के स्थान
१ कुछ श्वेतांबर ग्रन्थों में अप्रतिचक्रा नाम से उल्लेख है । २ मन्त्राधिराजकल्प में यक्षी का नाम विजया है । ४ मन्त्राधिराजकल्प में यक्षी का नाम सम्मोहिनी है ।
६ आचारदिनकर में श्यामा और मन्त्राधिराजकल्प में मानसी नामों से उल्लेख है ।
७ मन्त्राधिराजकल्प में चाण्डालिका नाम है ।
९ कुछ श्वेतांबर ग्रन्थों में प्रचण्डा एवं अजिता नामों से भी उल्लेख हैं ।
१० आचारदिनकर में विजया नाम है ।
१२ प्रवचनसारोद्धार में पन्नगा नाम है ।
१३ कुछ खेतांबर ग्रन्थों में अच्युता एवं गान्धारिणी नामों से उल्लेख हैं । १४ श्वेतांबर ग्रन्थों में इसे काली भी कहा गया है । १६ कुछ श्वेतांबर ग्रन्थों में वनजात देवी और धरणप्रिया नामों से भी उल्लेख हैं ।
१७ कुछ श्वेतांबर ग्रन्थों में वरदत्ता, अच्छुप्ता एवं सुगन्धि नाम दिये हैं ।
१८ मन्त्राधिराजकल्प में मालिनी नाम है ।
३ श्वेतांबर ग्रन्थों में इसे काली भी कहा गया है ।
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५ दिगंबर परम्परा में नरदत्ता भी कहा गया है ।
८ मन्त्राधिराजकल्प में गोमेधिका नाम से उल्लेख है ।
११ मन्त्राधिराजकल्प में वरभृत नाम है ।
१५ दिगंबर ग्रन्थों में विजया भी कहा गया है ।
१९ दिगंबर ग्रन्थों में कुसुममालिनी भी कहा गया है ।
२० दिगंबर ग्रन्थों की सूचियों में यक्षियों के नामों में एकरूपता और श्वेतांबर ग्रन्थों की सूचियों में यक्षियों के नामों में भिन्नता दृष्टिगत होती है ।
२१ यक्ष और यक्षियों के एक हाथ में फल ( या मातुलिंग) का प्रदर्शन विशेष लोकप्रिय था ।
२२ रामचन्द्रन, टी० एन०, तिरूपरूत्तिकुणरम ऐण्ड इट्स टेम्पल्स, बु०म०ग० म्यू ० न्यू० सि० खं० १, भाग ३, मद्रास, १९३४
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