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[ जैन प्रतिमाविज्ञान महत्वपूर्ण है । आवश्यकचूर्ण में उल्लेख है कि माता द्वारा देखे प्रथम स्वप्न ( वृषभ) एवं बालक के वक्षःस्थल पर वृषभ चिह्न के अंकित होने के कारण ही बालक का नाम ऋषभ रखा गया ।"
देवपति शक्रेन्द्र के निर्देश पर ऋषभ ने सुनन्दा एवं सुमंगला से विवाह किया। विवाह के पश्चात् ऋषभ का राज्याभिषेक हुआ । सुमंगला ने भरत एवं ब्राह्मी और ९६ अन्य सन्तानों को जन्म दिया । सुनन्दा ने केवल बाहुबली और सुन्दरी को जन्म दिया। काफी समय गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के बाद ऋषभ ने राज्य वैभव एवं परिवार को त्यागकर प्रव्रज्या ग्रहण की। ऋषभ ने विनीता नगर के बाहर सिद्धार्थं उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे वस्त्राभूषणों का त्यागकर दीक्षा ली थी । दीक्षा के पूर्व ऋषभ ने अपने केशों का चतुर्मुष्टिक लुंचन भी किया था । इन्द्र की प्रार्थना पर ऋषभ ने एक मुष्टि केश सिर पर ही रहने दिया । 3 उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त परम्परा के कारण ही सभी के साथ लटकती जटाएं प्रदर्शित की गयीं । कल्पसूत्र एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उल्लेख है अन्य सभी जिनों ने दीक्षा के पूर्व अपने मस्तक के सम्पूर्ण केशों का पांच मुष्टियों में लुंचन किया। भी पञ्चमुष्टि में सारे केशों के लुंचन का उल्लेख है ।
क्षेत्रों की मूर्तियों में ऋषभ कि ऋषभ के अतिरिक्त कुछ ग्रन्थों में ऋषभ के
दीक्षा के बाद काफी समय तक विचरण एवं कठिन साधना के उपरांत ऋषभ को पुरिमताल नगर के बाहर शकटमुख उद्यान में वटवृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । कैवल्य प्राप्ति के बाद देवताओं ने ऋषभ के लिए समवसरण का निर्माण किया, जहां ऋषभ ने अपना पहला उपदेश दिया । ज्ञातव्य है कि कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् सभी जिन अपना पहला उपदेश देवनिर्मित समवसरण में ही देते हैं । समवसरण में ही देवताओं द्वारा सम्बन्धित जिन के तीर्थं एवं संघ की रक्षा करनेवाले शासनदेवता ( यक्ष-यक्षी) नियुक्त किये जाते हैं । ऋषभ ने विभिन्न स्थलों पर धर्मोपदेश देकर घर्मतीर्थों की स्थापना की और अन्त में अष्टापद पर्वत पर निर्वाणपद प्राप्त किया ।
प्रारम्भिक मूर्तियां
ऋषभ का लांछन वृषभ है और यक्ष-यक्षी गोमुख एवं चक्रेश्वरी ( या अप्रतिचक्रा) हैं । ऋषभ की प्राचीनतम मूर्तियां कुषाण काल की हैं। ये मूर्तियां मथुरा और चौसा से मिली हैं। इनमें ऋषभ ध्यानमुद्रा में आसीन या कायोत्सर्ग में खड़े हैं और तीन या पांच लटकती केशवल्लरियों से शोभित हैं। मथुरा की तीन मूर्तियों में पीठिका-लेखों में भी ऋषभ का नाम है। चौसा से ऋषभ की दो मूर्तियां मिली हैं । इनमें ऋषभ कायोत्सर्ग-मुद्रा में हैं । ये मूर्तियां सम्प्रति पटना संग्रहालय (६५३८, ६५३९) में सुरक्षित हैं ।
गुप्तकालीन ऋषभ मूर्तियां मथुरा, चौसा एवं अकोटा से मिली हैं । मथुरा से छह मूर्तियां मिली हैं । इनमें से तीन में ऋषभ कायोत्सर्ग में खड़े हैं । इनमें अलंकृत भामण्डल एवं पार्श्ववर्ती चामरघरों से युक्त ऋषभ तीन या पांच लटों से शोभित हैं । एक उदाहरण ( पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा १२.२६८) में पीठिका लेख में ऋषभ का नाम भी उत्कीर्ण है । पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा की एक मूर्ति ( बी ७) में सिंहासन के धर्मचक्र के दोनों ओर दो ध्यानस्थ जिन मूर्तियां भी बनी हैं ( चित्र ४) । चौसा से चार मूर्तियां मिली हैं जिनमें जटाओं से सुशोभित ऋषभ ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं । अकोटा से ऋषभ की दो गुप्तकालीन श्वेताम्बर मूर्तियां मिली हैं (चित्र ५) । तीन लटों से शोभित ऋषभ दोनों उदाहरणों में कायोत्सर्ग में खड़े हैं । ल० छठीं शती ई० की दूसरी मूर्ति में ऋषभ के आसन के समक्ष दो मृगों से वेष्टित धर्मचक्र और छोरों
१ आवश्यकचूर्ण, पृ० १५१
२ हस्तीमल, जैन धर्म का मौलिक इतिहास, खं० १, जयपुर, १९७१, पृ०९-२९
३ ''''सयमेव चउमुट्ठियं लोयं करेइ । कल्पसूत्र १९५ त्रि० श०पु०च० ३.६०-७०
४ पउमचरिय ३.१३६; हरिवंशपुराण ९.९८; आदिपुराण १७.२०१; पद्मपुराण ३.२८३
५ दो मूर्तियां राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे २६, जे ६९ ) एवं एक मथुरा संग्रहालय (बी ३६ ) में हैं ।
६ पांच मूर्तियां मथुरा संग्रहालय और एक राज्य संग्रहालय, लखनऊ (०.७२) में हैं ।
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