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जिन - प्रतिमाविज्ञान ]
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आकाशवाणी भी हुई कि नेमि २२वें जिन हैं, जो अविवाहित रहते हुए ब्रह्मचर्य की अवस्था में ही दीक्षा ग्रहण करेंगे ।"
महावीर मन्दिर में केवल नेमि के शंख बजाने का दृश्य ही उत्कीर्ण है ।
दक्षिण की ओर नेमि
कृष्ण की आयुधशाला के समीप वार्तालाप की मुद्रा में वसुदेव-देवकी की मूर्तियां हैं। का विवाह मण्डप है । वेदिका के समीप राजीमती को अपनी एक सखी के साथ वार्तालाप की मुद्रा में दिखाया गया है । आकृतियों के नीचे 'राजीमती' और 'सखी' अभिलिखित हैं । इस दृश्य के ऊपर स्वजनों एवं सैनिकों के साथ नेमि के विवाह के लिए प्रस्थान का दृश्य है । समीप ही पिंजरे में बन्द मृग, शूकर, मेष जैसे पशु उत्कीर्ण हैं। साथ ही विवाह मण्डप की ओर आते और विवाहमण्डप के विपरीत दिशा में जाते हुए दो रथ भी बने हैं, जिनमें नेमि बैठे हैं । दूसरा रथ मि के बिना विवाह किये वापिस लौटने का चित्रण है । उत्तर की ओर नेमि की दीक्षा का दृश्य है । नेमि अपने दाहिनेहाथ से केशों का लुंचन कर रहे हैं। ध्यानमुद्रा में विराजमान नेमि के समीप ही हार, मुकुट एवं अंगूठी उत्कीर्ण है जिसका दीक्षा के पूर्व नेमि ने त्याग किया था । समीप ही इन्द्र खड़े हैं जो नेमि के लुंचित केशों को पात्र में संचित कर रहे हैं । बायीं ओर नेमि की कायोत्सर्ग - मुद्रा में तपस्यारत मूर्ति है । समीप ही एक देवालय बना है जिसके नीचे जयन्तनाग ( जयन्त नगा ) लिखा है । मध्य में नेमि का समवसरण है । समवसरण के समीप ही नेमि की दो ध्यानस्थ मूर्तियां भी हैं । समीप ही द्विभुजा अम्बिका भी आमूर्तित है ।
नेमि
विमलवसही की- देवकुलिका १० के वितान के दृश्यों में मध्य में कृष्ण एवं उनकी रानियों और नेमि को जलक्रीड़ा करते हुए दिखाया गया है । जैन परम्परा में उल्लेख है कि समुद्रविजय के अनुरोध पर कृष्ण नेमि को विवाह के लिए सहमत करने के उद्देश्य से जलक्रीड़ा के लिए ले गए थे। दूसरे वृत्त में कृष्ण की आयुधशाला एवं कृष्ण और नेमि के शक्ति परीक्षण के दृश्य हैं । दृश्य में कृष्ण बैठे हैं और नेमि उनके सामने खड़े हैं। दोनों की भुजाएं अभिवादन की मुद्रा में उठी हैं। आगेम को कृष्ण की गदा घुमाते और कृष्ण को नेमि की भुजा झुकाने का असफल प्रयास करते हुए दिखाया गया है । नेमि की भुजा तनिक भी नहीं झुकी है । अगले दृश्य में कृष्ण की भुजा केवल एक हाथ से झुका रहे हैं । कृष्ण की भुजा झुकी हुई है । समीप ही नेमि की पांचजन्य शंख बजाते एवं धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए मूर्तियां मी उत्कीर्ण हैं । धनुष दो टुकड़ों में खण्डित हो गया है। आगे बलराम एवं कृष्ण की वार्तालाप में संलग्न मूर्तियां हैं । तीसरे वृत्त में नेमि के विवाह का दृश्यांकन है । प्रारम्भ में एक पुरुष-स्त्री युगल को वार्तालाप की मुद्रा में दिखाया गया है । आगे विवाह मण्डप उत्कीर्ण है जिसके समीप पिंजरों में बन्द मृग, शूकर, सिंह जैसे पशु चित्रित हैं । आगे नेमि को रथ में बैठकर विवाह मण्डप की ओर जाते हुए दिखाया गया है । इस रथ के पास ही विवाह मण्डप से विपरीत दिशा में जाता हुआ एक दूसरा रथ भी उत्कीर्ण है । यह नेमि के विवाह स्थल पर पहुँचने से पूर्व ही वापिस लौटने का चित्रण है । आगे नेमि की ध्यानमुद्रा में एक मूर्ति है जिसमें नेमि दाहिने हाथ से अपने केशों का लुंचन कर रहे हैं । नेमि के बायीं ओर चार आकृतियां हैं और दाहिनी ओर इन्द्र खड़े हैं । इन्द्र नेमि के लुंचित केशों को पात्र में संचित कर रहे हैं। अगले दृश्य में नेमि के कैवल्य प्राप्ति का चित्रण है । नेमि ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और उनके दोनों ओर कलशधारी एवं मालाधारी आकृतियां बनी हैं । 3
लूणवसही की देवकुलिका ११ के वितान पर कृष्ण एवं जरासन्ध के युद्ध, मि के विवाह एवं दीक्षा के विस्तृत चित्रण हैं । * सम्पूर्ण दृश्यावली सात पंक्तियों में विभक्त है । चौथी पंक्ति में विवाह स्थल की ओर जाता हुआ नेमि का रथ
१ त्रि० श०पु०च०, खं० ५, गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, बड़ौदा, १९६२, पृ० २४८ - ५०; हस्तीमल, पू०नि०, पृ० १८५-८६
२ त्रि० श०पु०च०, खं० ५, गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, बड़ौदा, १९६२, पृ० २५०-५५
३ जयन्त विजय, मुनिश्री, पू०नि०, पृ० ६७-६९
४ वही, पृ० १२२
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