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जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
१२१ उत्कीर्ण हैं । ग्यारसपुर के बजरामठ में भी नेमि की एक कायोत्सर्ग मूर्ति (११वीं शती ई०, बी० ९) है। इसमें भी लांछन नहीं उत्कीर्ण है, पर यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं।
खजुराहो में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां हैं। दोनों में नेमि ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं । मन्दिर १० की ग्यारहवीं शती ई० की मूति में लांछन स्पष्ट नहीं है, पर यक्षी अम्बिका ही है। पीठिका पर ग्रहों की सात मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । स्थानीय संग्रहालय की दूसरी मूर्ति (के १४) में शंख लांछन और सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं । परिकर में २३ छोटी जिन मूर्तियां भी बनी हैं । गुर्गी (रीवा) की ग्यारहवीं शती ई० की एक कायोत्सर्ग मूर्ति इलाहाबाद संग्रहालय (ए०एम० ४९८) में है। यहां नेमि के साथ शंख लांछन और सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं । पुरुषों के स्थान पर स्त्री चामरधारिणी सेविकाएं बनी हैं । चार छोटी जिन मूर्तियां भी चित्रित हैं । धुबेला संग्रहालय (म० प्र०) में भी एक मूर्ति है । इसमें नेमि ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और परिकर में २२ जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । धुबेला संग्रहालय की ११४२ ई० की एक दूसरी मूर्ति के लेख में नेमिनाथ का नाम उत्कीर्ण है।३ ११५१ ई० की एक मूर्ति हानिमन संग्रहालय में है। नेमि का शंख लांछन पीठिका के साथ ही वक्षःस्थल पर भी उत्कीर्ण है।
बिहार-उड़ीसा-बंगाल-इस क्षेत्र से केवल चार मूर्तियां (११वीं-१२वीं शती ई०) मिली हैं। इस क्षेत्र में शंख लांछन का चित्रण नियमित था। पर यक्ष-यक्षी का निरूपण नहीं हुआ है । उड़ीसा में बारभुजी एवं नवमुनि गुफाओं की दो मूर्तियों में केवल अम्बिका ही निरूपित हैं। अलुअर से मिली एक कायोत्सर्ग मूर्ति (११वीं शती ई०) पटना संग्रहालय (१०६८८) में सुरक्षित है ।" नवमुनि, बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं में नेमि की तीन ध्यानस्थ मूर्तियां हैं । जीवनदृश्य
नेमि के जीवनदृश्यों के अंकन कुम्मारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों (११वीं शती ई०) और विमलवसही (१२ वीं शती ई०) एवं लूणवसही (१३ वीं शती ई०) में हैं । कल्पसूत्र के चित्रों में भी नेमि के जीवनदृश्यों के अंकन हैं। इनमें पंचकल्याणकों के अतिरिक्त नेमि के विवाह और कृष्ण की आयुधशाला में नेमि के शौयं प्रदर्शन से सम्बन्धित दृश्य विस्तार से अंकित हैं। कुम्मारिया के शान्तिनाथ मन्दिर एवं लूणवसही की देवकुलिका ११ के वितानों के दृश्यों में नेमि एवं राजीमती को विवाह वेदिका के समक्ष खड़ा प्रदर्शित किया गया है, जबकि जैन परम्परा के अनुसार नेमि विवाह-स्थल पर गये बिना मार्ग से ही दीक्षा के लिए लौट पड़े थे।
कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी म्रमिका के पांचवें वितान पर नेमि के जीवनदृश्य हैं (चित्र २९)। सम्पूर्ण दृश्यावली तीन आयतों में विभक्त है। बाहरी आयत में पूर्व और उत्तर की ओर नेमि के पूर्वभव (महाराज शंख) के चित्रण हैं। महाराज शंख को अपनी भार्या यशोमती, योद्धाओं एवं सेवकों के साथ आमूर्तित किया गया है। पश्चिम की ओर नेमि को माता शिवा शय्या पर लेटी हैं। समीप ही १४ मांगलिक स्वप्न और नेमि के माता-पिता की वार्तालाप में संलग्न मूर्तियां और राजा समुद्रविजय की विजयों के दृश्य हैं। दूसरे आयत में दक्षिण की ओर शिवादेवी नवजात शिशु के साथ लेटी हैं। आगे नैगमेषी द्वारा शिशु को जन्माभिषेक के लिए मेरु पर्वत पर ले जाने का दृश्य है। आगे कलशधारी
१ चन्द्र, प्रमोद, पू०नि०, पृ० ११५ २ दीक्षित, एस०के०, ए गाईड टू दि स्टेट म्यूज़ियम धुबेला (नवगांव), विन्ध्यप्रदेश, नवगांव, १९५९, पृ० १२ ३ जैन, बालचन्द्र, 'धुबेला संग्रहालय के जैन मूर्ति लेख', अनेकान्त, वर्ष १९, अं० ४, पृ० २४४ ४ कीलहानं, एफ०, 'ऑन ए जैन स्टैचू इन दि हानिमन म्यूजियम', ज०रा०ए०सो०, १८९८, पृ० १०१-०२ ५ प्रसाद, एच० के०, पू०नि०, पृ० २८७ • ६ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १२९, १३२; कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८२
७ त्रि००पु०१०, खं० ५, गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, बड़ौदा, १९६२, पृ० २५८-६०
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