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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
देवों और वज्र से युक्त इन्द्र की मूर्तियां हैं। चामर एवं कलश धारण करने वाली आकृतियों से वेष्टित इन्द्र की गोद में एक शिशु विराजमान है।
पश्चिम की ओर रथ पर बैठे नेमि को बारात के साथ विवाह-स्थल की ओर जाते हुए दिखाया गया है। साथ में खड्गधारी और अश्वारोही योद्धाओं की एवं दूसरे लोगों की आकृतियां भी प्रदर्शित हैं। आगे एक पिंजरे में बन्द शूकर, मृग एवं मेष जैसे पशुओं की आकृतियां हैं। इन्हीं पशुओं के भावी वध की बात जानकर नेमि ने विवाह न करने और दीक्षा लेने का निश्चय किया था। समीप ही विवाह-मण्डप को वेदिका के दोनों ओर राजीमती और नेमि की आकृतियां खड़ी हैं। पूर्वोक्त सन्दर्भ में यह चित्रण परम्परा के विरुद्ध ठहरता है।
तीसरे आयत में दक्षिण की ओर नेमि के विवाह से लौटने का दृश्यांकन है। नेमि रथ में बेठे हैं और समीप ही नमस्कार-मुद्रा में खड़े एक पुरुष की आकृति है। यह आकृति सम्भवतः राजीमती के पिता की है जो दीक्षा ग्रहण के लिए तत्पर नेमि से ऐसा न कर विवाह-मण्डप वापस चलने की प्रार्थना कर रहे हैं। आगे नेमि को शिविका में बैठकर दीक्षा के लिए जाते हुए दरशाया गया है। समीप ही ९ नृत्य एवं वाद्यवादन करती आकृतियां हैं, जो दीक्षा-कल्याणक के अवसर पर आनन्द मग्न हैं। आगे नेमि के आभरणों के परित्याग एवं केश-लुंचन के दृश्य हैं। समीप ही नेमि की कायोत्सर्ग में तपस्यारत मूर्ति भी उत्कीर्ण है। दाहिने छोर पर गिरनार पर्वत और देवालय बने हैं। देवालय में द्विभुज अम्बिका की मूर्ति प्रतिष्ठापित है। पश्चिम की ओर नेमि का समवसरण उत्कीर्ण है जिसमें ऊपर की ओर नेमि की ध्यानस्थ मूर्ति है। समवसरण में परस्पर शत्रुभाव रखने वाले पशु-पक्षियों (गज-सिंह, मयूर-सपं) को साथ-साथ प्रदर्शित किया गया है। बायीं ओर के जिनालय में नेमि की ध्यानस्थ मूर्ति प्रतिष्ठित है। समीप ही चार उपासकों की मूर्तियां और दो देवालय भी उत्कीर्ण हैं। ये चित्रण गिरनार पर्वत पर नेमि एवं अम्बिका के मन्दिरों के निर्माण से सम्बन्धित हैं।
कुम्भारिया के महावीर मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के पांचवें वितान पर नेमि के जीवनदृश्य हैं। (चित्र २२ वामा)। दक्षिणी छोर पर नेमि के पूर्वभव (शंख) का अंकन है। इसमें शंख के पिता श्रीषेण उत्कीर्ण हैं। दक्षिणी-पश्चिमी छोरों पर कई विश्रामरत मूर्तियां हैं। नीचे 'अपराजित विमान देव' लिखा है। ज्ञातव्य है कि शंख का जीव अपराजित विमान से ही शिवा के गर्भ में आया था। उत्तर की ओर समुद्रविजय एवं हरिवंश (या यदुवंश) के शासकों की कई मूर्तियां हैं। अन्तिम आकृति के नीचे 'समुद्रविजय' उत्कीर्ण है। पश्चिम की ओर नेमि की माता की शय्या पर लेटी आकृति एवं १४ शुभ स्वप्न चित्रित हैं। उत्तर की ओर शिवा देवी शिशु के साथ लेटी हैं। नीचे 'श्रीशिवादेवी रानी प्रसूतिगृह-नेमिनाथ जन्म' अभिलिखित है। आगे नेमि के जन्म-अभिषेक का दृश्य है। पूर्व की ओर नेमि को दो स्त्रियां स्नान करा रही हैं।
- आगे कृष्ण की आयुधशाला चित्रित है जिसमें कृष्ण के शंख, गदा, चक्र, खड्ग जैसे आयुध प्रदर्शित हैं। समीप ही नेमि कृष्ण का पांचजन्य शंख बजा रहे हैं । आकृति के नीचे 'श्रीनेमि' लिखा है। जैन ग्रन्थों में उल्लेख है कि एक बार नेमि घूमते हुए कृष्ण की आयुधशाला पहुंच गए, जहां उन्होंने कृष्ण के आयुधों को देखा । कौतुकवश नेमि ने शंख की ओर हाथ बढ़ाया पर आयुधशाला के रक्षक ने नेमि को ऐसा करने से रोका और कहा कि शंख का बजाना तो दूर वे उसे उठा भी नहीं सकेंगे। इस पर नेमि ने शंख को बजा दिया । जब इसकी सूचना कृष्ण को मिली तो वे नेमि की इस अपार शक्ति से सशंकित हो उठे और उन्होंने नेमि से शक्ति परीक्षण की इच्छा व्यक्त की। नेमि ने द्वन्द्व युद्ध के स्थान पर एक दूसरे की भुजा को झुकाकर बल परीक्षण करने को कहा। कृष्ण नेमि की भुजा किंचित भी नहीं झुका सके किन्तु नेमि ने सहजभाव से कृष्ण की भुजा झुका दी। कृष्ण नेमि को इस अपरिमित शक्ति से भयभीत हुए किन्तु बलराम ने कृष्ण को बताया कि चक्रवर्ती और इन्द्र से अधिक शक्तिशाली होने के बाद भी नेमि स्वभाव से शान्त और राज्यलिप्सा से मुक्त हैं। इसी समय
१ दक्षिणार्ध पर शान्ति के जीवदृश्य हैं।
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