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[ जैन प्रतिमाविज्ञान है।' त्रिशूल गुफा में भी चार मूर्तियां हैं। इनमें वृषभ लांछन, जटा एवं जटामुकुट से युक्त ऋषभ कायोत्सर्ग में खड़े हैं। उड़ीसा के किसी स्थल से मिली ऋषभ की जटामुकुट से शोभित और कायोत्सर्ग में खड़ी एक मूर्ति (१२ वीं शती ई०) म्यूजेगीमे, पेरिस में है। चामरधर और आठ ग्रह भी अंकित हैं।
अम्बिका नगर (बांकुड़ा) से लांछन एवं जटामुकुट से शोभित एक विशाल कायोत्सर्ग मूर्ति (११ वीं शती ई०) मिली है.४ जिसके परिकर में २४ जिनों की लांछनयुक्त छोटी मूर्तियां हैं । मानभूम एवं बारभूम (मिदनापुर) की दो मतियां (११ वीं शती ई०) भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता में हैं। इनमें भी २४ लघु जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं। आशतोष संग्रहालय की एक कायोत्सर्ग मूर्ति (११ वीं शती ई०) में लांछन, नवग्रह एवं गणेश की आकृतियां बनी हैं । बंगाल की केवल एक ही ऋषम मूर्ति (११ वीं शती ई०) में यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। यक्षी अम्बिका है पर द्विभुज यक्ष की पहचान सम्भव नहीं है।
विश्लेषण-बिहार-उड़ीसा-बंगाल की ऋषम मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि ऋषम के साथ वृषभ लांछन प दाओं के साथ ही जटामकट का प्रदर्शन भी लोकप्रिय था। वषम लांछन का चित्रण ल. आठवीं शती ई० में दो प्रारम्भ हो गया। यक्ष-यक्षी का अंकन केवल एक ही उदाहरण में हुआ है, और उसमें भी वे पारम्परिक नहीं हैं।" परिकर में २३ या २४ जिनों की छोटी मूर्तियों एवं नवग्रहों के अंकन विशेष लोकप्रिय थे। जीवनदृश्य
ऋषभ के जीवनदृश्यों के उदाहरण राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे ३५४), ओसिया की देवकुलिका, कुम्भारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों एवं कल्पसूत्र के चित्रों में सुरक्षित हैं। ओसिया और कुम्भारिया के उदाहरण ग्यारहवीं शती ई० और कल्पसूत्र के चित्र पन्द्रहवीं शती ई० के हैं।
मथरा से प्राप्त और राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित ल० पहली शती ई० के एक पट्ट (जे ३५४) पर नीलांजना के नृत्य का दृश्य उत्कीर्ण है (चित्र १२)। नीलांजना इन्द्रलोक की नर्तकी थी। नीलांजना के नृत्य के कारण ही ऋषम को वैराग्य उत्पन्न हुआ था ।' नीलांजना के नृत्य से सम्बन्धित पट्ट का दूसरा भाग भी प्राप्त हो गया है। वी०एन० श्रीवास्तव ने दोनों पदों के दृश्यों को पांच भागों में विभाजित किया है। दाहिने कोने की आकृति को उन्होंने नीलांजना के नत्य को देखते हए शासक ऋषभ माना है। पट्ट पर ऋषभ के संसार त्यागने एवं केवल-ज्ञान प्राप्त करने के भी चित्रण हैं।
१ मित्रा, देवला, 'शासनदेवीज इन दि खण्डगिरि केव्स', ज०ए०सी०, खं० १, अं० २, पृ० १२८-३० २ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, लिस्ट ऑव ऐन्शण्ट मान्युमेण्ट्स इन दि प्राविन्स ऑव बिहार ऐण्ड उड़ीसा, कलकत्ता,
१९३१, पृ. २८१ ३ जै०क०स्था०, खं० ३, पृ० ५६२-६३ ४ मित्रा, देबला, 'सम जैन एन्टिक्विटीज फ्राम बांकुड़ा, वेस्ट बंगाल', ज०ए०सी०बं०, खं० २४, अं० २, पृ० १३२ ५ एण्डरसन, जे०, केटलाग ऐण्ड हैण्डबुक टू दि आकिअलाजिकल कलेक्शन इन दि इण्डियन म्यूजियम, कलकत्ता,
भाग १, कलकत्ता, १८८३, पृ० २०२; बनर्जी, जे० एन०, 'जैन इमेजेज', दि हिस्ट्री ऑव बंगाल, खं० १, ढाका, १९४३, पृ० ४६४-६५ ६ मित्र, कालीपद, 'आन दि आइडेण्टिफिकेशन ऑव ऐन इमेज', ई०हि०क्वा०, खं० १८, अं० ३, पृ० २६१-६६ ७ नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं की दो ऋषभ मूर्तियों में मूर्तियों के नीचे चक्रेश्वरी आमूर्तित हैं। ८ पउमचरिय ३.१२२-२६; हरिवंशपुराण ९.४७-४८ ९ राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे ६०९ : श्रीवास्तव, वी० एन०, 'सम इन्टरेस्टिंग जैन स्कल्पचर्स इन दि स्टेट म्यूज़ियम,
लखनऊ', सं०पु०प०, अं० ९, पृ० ४७-४८
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