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जिन - प्रतिमाविज्ञान ]
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ल० दसवीं शती ई० की एक मूर्ति पुडुकोट्टई से मिली है ।' कायोत्सर्ग में खड़ी ऋषभ मूर्ति के परिकर में २३ छोटी जिन मूर्तियां और पीठिका पर गोमुख चक्रेश्वरी निरूपित हैं । ऋषभ की जटाएं और वृषभ लांछन भी उत्कीर्ण हैं । कलसमंगलम ( पुडुकोट्टई) से मिली एक अन्य मूर्ति में भी गोमुख चक्रेश्वरी एवं परिकर में २४ छोटी जिन मूर्तियां बनी हैं। समान लक्षणों वाली कन्नड़ रिसर्च इन्स्टिट्यूट म्यूजियम की एक ध्यानस्थ मूर्ति के परिकर में ७१ जिन आकृतियां और मूलनायक के दोनों ओर सुपार्श्व एवं पारख की कायोत्सर्ग मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं ।
विश्लेषण
संपूर्ण अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उत्तर भारत की जिन मूर्तियों में ऋषभ सर्वाधिक लोकप्रिय थे । ल० ८वीं शती ई० में उनके वृषभ लांछन और नवीं दसवीं शती ई० में पारम्परिक यक्ष-यक्षी, गोमुख एवं चक्रेश्वरी का अंकन प्रारम्भ हुआ ।" ऋषभ की जटाओं का निर्धारण मथुरा में पहली शती ई० में ही हो गया था । देवगढ़, खजुराहो, कुम्भारिया ( महावीर मन्दिर) एवं लखनऊ संग्रहालय की कुछ मूर्तियों में ऋषभ के साथ पारम्परिक यक्ष-यक्षी के साथ ही अम्बिका, पद्मावती, शान्तिदेवी, सरस्वती, लक्ष्मी, वैरोट्या एवं ब्रह्मशान्ति मी निरूपित हैं । ऋषभ के साथ इन देवों का निरूपण ऋषभ की विशेष प्रतिष्ठा का सूचक है ।
ऋषभ के निरूपण में हिन्दू देव शिव का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। शिव का प्रभाव ऋषभ की जटाओं, वृषभ लांछन एवं गोमुख यक्ष के सन्दर्भ में देखा जा सकता है । गोमुख यक्ष वृषानन है और उसका वाहन भी वृषभ है । गोमुख यक्ष के हाथों में भी शिव से सम्बन्धित परशु एवं पाश प्रदर्शित हैं । ऋषभ की चक्रेश्वरी यक्षी वाहन (गरुड) और आयुधों (चक्र, शंख, गदा ) के आधार पर हिन्दू वैष्णवी से प्रभावित प्रतीत होती है । एक चक्रेश्वरी मूर्ति में देवी को स्पष्टतः 'वैष्णवी देवी' कहा गया है। इस प्रकार शैव एवं देवों को जैन धर्म के आदि तोर्थंकर ऋषभ के शासनदेवता के रूप में निरूपित करके प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है ।
कुम्भारिया के महावीर मन्दिर की वैष्णव धर्मों के प्रमुख आराध्य सम्भवतः जैन धर्म की श्रेष्ठता
(२) अजितनाथ
जीवनवृत्त
अजितनाथ इस अवसर्पिणी युग के दूसरे जिन हैं। विनीता नगरी के महाराज जितशत्रु उनके पिता और विजया देवी उनकी माता थीं। अजित के माता के गर्भ में आने के बाद से जितशत्रु अविजित रहे, इसी कारण बालक का नाम अजित रखा गया । आवश्यकचूर्ण में उल्लेख है कि गर्भकाल में जितशत्रु विजया को खेल में न जीत सके थे, इसी कारण बालक का नाम अजित रखा गया । राजपद के भोग के बाद पंचमुष्टिक में केशों का लुंचन कर अजित ने दीक्षा ग्रहण की ।
१ बालसुब्रह्मण्यम, एस० आर० तथा राजू, वी० वी०, 'जैन वेस्टिजेज़ इन दि पुडुकोट्टा स्टेट', क्वा०ज० मै०स्टे०, खं० २४, अं० ३, पृ० २१३-१४
२ वेंकटरमन, के० आर०, 'दि जैनज इन दि पुडुकोट्टा स्टेट', जैन एण्टि०, खं० ३, अं० ४, पृ० १०५
३ अन्निगेरी, ए० एम०, ए गाइड टू दि कन्नड़ रिसर्च इंस्टिट्यूट म्यूज़ियम, धारवाड़, १९५८, पृ० २६-२७ ४ केवल उड़ीसा की उदयगिरि - खण्डगिरि गुफाओं में ही ऋषभ की तुलना में पार्श्व की अधिक मूर्तियां हैं ।
५ देवगढ़, विमलवसही एवं कुछ अन्य स्थलों की मूर्तियों में ऋषभ के साथ सर्वानुभूति एवं अम्बिका भी आमूर्तित हैं 1 बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का उत्कीर्णन लोकप्रिय नहीं था ।
६ बनर्जी, जे० एन०, दि डीवेलपमेन्ट ऑव हिन्दू आइकानोग्राफी, कलकत्ता, १९५६, पृ० ५६२
७ राव, टी० ए० गोपीनाथ, एलिमेन्ट्स ऑव हिन्दू आइकानोग्राफी, खं० १, भाग २, वाराणसी, १९७१ (पु०मु० ), पृ० ३८४-८५
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