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जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
हैं। गया से मिली एक दिगंबर मूर्ति (८ वीं-९ वीं शती ई०) इलाहाबाद संग्रहालय (२८०) में सुरक्षित है।' कायोत्सर्ग में खड़े ऋषभ जटामुकुट एवं केशवल्लरियों से युक्त हैं। सिंहासन पर वृषभ लांछन एवं परिकर में लांछनयुक्त २४ छोटी जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। परिकर में सर्पफणों एवं जटाओं से युक्त पावं एवं ऋषभ की मूर्तियां हैं। काकटपुर (पुरी) से वृषभ लांछन युक्त दो दिगंबर मूर्तियां मिली हैं, जो भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता में संग्रहीत हैं ।२ जटा से शोभित ऋषभ कायोत्सर्ग में खड़े हैं। एक उदाहरण में आठ ग्रह भी उत्कीर्ण हैं। नवीं से ग्यारहवीं शती ई० के मध्य की आठ मूर्तियां अलुआरा (मानभूम) से मिली हैं, जो सम्प्रति पटना संग्रहालय में हैं। सात उदाहरणों में ऋषभ निर्वस्त्र हैं और कायोत्सर्ग में खड़े हैं। इनमें केवल जटाओं के आधार पर ही ऋषभ की पहचान की गई है।
ल० नवीं शती ई० को दो मूर्तियां पोट्टासिंगीदी (क्योंझर) से मिली हैं और उड़ीसा राज्य संग्रहालय, भुवनेश्वर में सुरक्षित हैं। ध्यानमुद्रावाली एक मूर्ति में वृषभ लांछन के साथ ही लेख में ऋषभ का नाम भी उत्कीर्ण है । दूसरी मूर्ति में ऋषभ निर्वस्त्र हैं और कायोत्सर्ग में खड़ा हैं। जटाओं से शोभित ऋषभ त्रिछत्र के स्थान पर एकछत्र से युक्त हैं। चरंपा (बालासोर) की एक कायोत्सर्ग मूर्ति (९ वीं-१० वीं शती ई०) में जटा, वृषभ लांछन, एक छत्र और आठ ग्रह उत्कीर्ण हैं।"
दसवीं शती ई० की एक मनोज्ञ मूर्ति सुरोहर (दिनाजपुर, बांगलादेश) से मिली है और वरेन्द्र शोध संग्रहालय (१४७२) में सुरक्षित है (चित्र ९)।६ ऋषभ ध्यानमुद्रा में सिंहासन पर विराजमान हैं और जटामुकूट एवं केशवल्लरियों से शोभित हैं। वृषभ लांछन भी उत्कीर्ण है। परिकर में जिनों की २३ लांछन युक्त छोटी मूर्तियां बनी हैं। २३ जिनों में से केवल सुपार्श्व एवं सुमति की पहचान सम्भव नहीं है। इनके साथ पारम्परिक लांछन (स्वस्तिक एवं क्रौंच) के स्थान पर पद्म और पशु (सम्भवतः श्वान्) उत्कीर्ण हैं। आशुतोष संग्रहालय में भी ल० दसवीं शती ई० की एक मूर्ति है, जिसमें जटामुकुट एवं लांछन से युक्त ऋषभ कायोत्सर्ग में निरूपित हैं। मूर्ति के परिकर में चार जिन मूर्तियां बनी हैं। घटेश्वर (बंगाल) से मिली दसवीं शती ई० की एक दिगंबर मूर्ति के परिकर में २४ छोटी जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ल. दसवीं शती ई० की एक ध्यानमुद्रावाली मूर्ति तालागुड़ी (पुरुलिया) से भी मिली है। इसमें जटाजूट एवं लांछन से युक्त ऋषभ के वक्ष पर श्रीवत्स नहीं है । ऋषभ की कुछ मूर्तियां भेलोवा (दिनाजपुर, बांगलादेश) एवं संक (पुरुलिया, बंगाल) से भी मिली हैं (चित्र १०, ११) ।
खण्डगिरि की जैन गुफाओं में भी ऋषभ की कई मूर्तियां (११ वी-१२ वीं शती ई०) हैं । नवमुनि गुफा में दो मूर्तियां ध्यानमुद्रा में हैं। इनमें वृषभ लांछन और जटाएं प्रदर्शित हैं पर सिंहासन, भामण्डल, श्रीवत्स एवं उड्डीयमान मालाधर नहीं हैं। एक मूर्ति में ऋषभ के साथ दशभुज चक्रेश्वरी है। समान लक्षणों वाली एक अन्य ध्यानमुद्रावाली मूर्ति बारभुजी गुफा में है जिसमें सिंहासन, भामण्डल एवं उड्डीयमान मालाधर चित्रित हैं। यहां चक्रेश्वरी बारह भुजाओंवाली
१ चंद्र, प्रमोद, स्टोन स्कल्पचर इन दि एलाहाबाद म्यूजियम, बम्बई, १९७०, पृ० ११२ २ रामचन्द्रन, टी०एन०, जैन मान्युमेण्ट्स ऐण्ड प्लेसेज आव फर्स्ट क्लास इम्पार्टेन्स, कलकत्ता, १९४४, पृ० ५९-६० ३ १०६७६, १०६८०-८१,१०६८३-८७ ४ जोशी, अर्जुन, 'फर्दर लाइट आन दि रिमेन्स ऐट पोट्टासिंगीदी', उ.हिरिज०, खं० १०, अं० ४, पृ० ३०-३१ ५ दश, एम०पी०, 'जैन एन्टिक्विटीज फाम चरंपा', उ.हिरि०ज०, खं० ११, अं० १, पृ० ५०-५१ ६ गांगुली, कल्याण कुमार, 'जैन इमेजेज़ इन बंगाल', इण्डि०क०. खं० ६, पृ० १३८-३९ ७ सरकार, शिवशंकर, 'आन सम जैन इमेजेज फ्राम बंगाल', माडर्न रिव्यू, खं० १०६, अं० २, पृ० १३०-३१ ८ दत्त, कालीदास, "दि एन्टिक्विटीज ऑव खारी', ऐनुअल रिपोर्ट, वारेन्द्र रिसर्च सोसाइटी, १९२८-२९, पृ० ५-६ ९ नाहटा, भंवरलाल, 'तालागुड़ी को जैन प्रतिमा', जैन जगत, वर्ष १३, अं० ९-११, पृ० ६०-६१
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