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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
सम्भवनाथ मन्दिर-सम्भवनाथ मन्दिर का निर्माण तेरहवीं शती ई० में हआ। मन्दिर की भिति पर महाविद्याओं, सरस्वती एवं शान्तिदेवी की मूर्तियां हैं। महाविद्याओं में केवल रोहिणी, चक्रेश्वरी(२), वज्रांकुशा(३), महाकाली एवं सर्वास्त्रमहाज्वाला (मेषवाहना) ही आमूर्तित हैं । जंघा और अधिष्ठान की दो देवियों की पहचान सम्भव नहीं है । एक की ऊपरी भुजाओं में गदा और वज्र, तथा दूसरी की भुजाओं में धन का थैला और अंकुश प्रदर्शित हैं।
तारंगा
अजितनाथ मन्दिर-मेहसाणा जिले की तारंगा पहाड़ी पर चौलुक्य शासक कुमारपाल (११४३-७२ ई०) के शासनकाल में निर्मित अजितनाथ का विशाल श्वेताम्बर जैन मन्दिर है (चित्र ७९)। गर्भगृह एवं गूढ़मण्डप में तेरहवींचौदहवीं शती ई० की जिन मूर्तियां हैं। मन्दिर की मूर्तियां चार से दस भुजाओं वाली हैं। मन्दिर में महाविद्याओं की सर्वाधिक मूर्तियां हैं। महाविद्याओं के साथ वाहनों का नियमित प्रदर्शन नहीं हुआ है। महाविद्याओं के निरूपण में सामान्यतः निर्वाणकलिका एवं आचारदिनकर के निर्देशों का पालन किया गया है । मन्दिर की महाविद्या मूर्तियों की संख्या के आधार पर उनकी लोकप्रियता का क्रम इस प्रकार है-अप्रतिचक्रा (१७), रोहिणी (८), वज्रशृंखला (८), महाकाली (६), वज्रांकुशा (४), प्रज्ञप्ति(३), गौरी(३), नरदत्ता(३), महामानसी (३), काली (२), वैरोटया (२) एवं सर्वास्त्रमहाज्वाला (१) । अन्यत्र विशेष लोकप्रिय गांधारी, मानवी, अच्छुप्ता एवं मानसी की एक भी मूति नहीं उत्कीर्ण है। सरस्वती (१४) और शान्तिदेवी (२१) की भी मूर्तियां हैं।
- अन्य श्वेताम्बर स्थलों के समान यहां भी यक्षी चक्रेश्वरी और महाविद्या अप्रतिचक्रा के मध्य स्वरूपगत भेद कर पाना कठिन है। अम्बिका यक्षी की केवल दो मूर्तियां हैं। सिंहवाहना अम्बिका के करों में वरदमुद्रा, आम्रलुम्बि, पाश एवं बालक हैं। मन्दिर में गोमुख (१) एवं सर्वानुभूति (३) यक्षों और क्षेत्रपाल (१) की भी मूर्तियां हैं। श्मश्रु युक्त क्षेत्रपाल की दो भुजाओं में गदा और सर्प हैं । भित्ति पर अष्ट-दिक्पाल मूर्तियों के तीन समूह उत्कीर्ण हैं। मन्दिर पर ऐसे कई देवों को भी मूर्तियां हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है । ऐसी एक महिषारूढ़ देवता(३) की मूर्ति में अवशिष्ट भुजाओं में वरदमुद्रा, पाश और फल हैं । देवियों में दो ऊपरी भुजाओं में त्रिशूल एवं सर्प,या अंकुश एवं पाश धारण करने वाली देवियां विशेष लोकप्रिय थीं। इनकी निचली भुजाओं में वरदमुद्रा एवं फल (या कलश) हैं। स्मरणीय है कि ये देवियां गुजरात एवं राजस्थान के अन्य मन्दिरों में भी लोकप्रिय थीं। एक कुक्कुट वाहना देवी (दक्षिणी भित्ति) को अवशिष्ट भुजाओं में वरदमुद्रा, पद्म एवं दण्ड हैं । सिंहवाहना एक देवी (पश्चिमी जंघा) की भुजाओं में वरदमुद्रा, परशु, पाश और फल हैं । एक मयूरवाहना देवी (उत्तरी भित्ति) की सुरक्षित भुजा में त्रिशूल-घण्ट है। वृषभवाहना एक देवी (पश्चिा भजाओं में वज्र और जलपात्र हैं। उत्तरी भित्ति को एक हंसवाहना (?) देवी के हाथों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, पद्म, सर्प त्रिशल और कमण्डल हैं। मन्दिर के अधिष्ठान पर भी ऐसी तीन देवियां उत्कीर्ण हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है। पहली देवी (उत्तरी) की भुजाओं में वरदमुद्रा, अंकुश, सनालपद्म, कमण्डलु; दूसरी देवी (दक्षिण) को भुजाओं में वरदमुद्रा, पाश, वज्र एवं फल; और तीसरी देवी (उत्तरी) की भुजाओं में वरदमुद्रा, परशु, घण्ट एवं फल हैं।
राजस्थान
ल० आठवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में विपूल संख्या में जैन मन्दिरों एवं
१ सोमपुरा, कान्तिलाल फूलचन्द, पू०नि०, पृ० १५८ २ तिवारी, एम०एन०पी०, "कुंभारिया के सम्भवनाथ मन्दिर की जैन देवियां', अनेकान्त,वर्ष २५,०३, पृ०१०१-०३ ३ सोमपुरा, कान्तिलाल फूलचन्द, 'दि आर्किटेक्चरल ट्रीटमेन्ट ऑव दि अजितनाथ टेम्पल ऐट तारंगा', विद्या,
खं० १४, अं० २, पृ० ५०-५७ ४ गरुडवाहना देवी के करों में वरद-(या अभय-मुद्रा, शंख, चक्क एवं गदा प्रदर्शित हैं।
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