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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
बिहार
बिहार में मुख्यतः राजगिर (वैभार, सोनभण्डार, मनियार मठ), मानभूम एवं बक्सर के विभिन्न स्थलों से जैन शिल्प सामग्री मिली है । इस क्षेत्र की मूर्तियां दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं । जिन मूर्तियों की संख्या सबसे अधिक है। इनमें ऋषभ और पार्व की सर्वाधिक मतियां हैं। साथ ही अजित, सम्भव, अभिनन्दन, नेमि एवं महावीर की भी मूर्तियां मिली हैं। जिन मूर्तियों में लांछन सदैव प्रदर्शित हैं पर श्रीवत्स, सिंहासन एवं धर्मचक्र के चित्रण में नियमितता नहीं प्राप्त होती है। जिन मतियों में दुन्दुभिवादक, गजों और यक्ष-यक्षी' की आकृतियां नहीं प्रदर्शित हैं। शीर्ष भाग में अशोक वृक्ष का चित्रण विशेष लोकप्रिय था। अम्बिका, पद्मावती (?), जिन चौमुखी और जैन युगलों की भी कुछ मूर्तियां मिली हैं।
राजगिर की सभी पांच पहाड़ियों से प्राचीन जैन मूर्तियां मिली हैं। इनमें वैभार पहाड़ी पर सर्वाधिक मूर्तियां हैं । उदयगिरि पहाड़ी के आधुनिक जैन मन्दिर में पार्व की एक मूर्ति (९वीं शतीई०) सुरक्षित है । वैभार पहाड़ी के आधुनिक जैन मन्दिर में ऋषभ, सम्भव,पावं, महावीर एवं जैन युगलों की मूर्तियां हैं। मनियार मठ से भी जैन मूर्तियां मिली हैं। वैभार पहाड़ी की सोनभण्डार गुफाओं में भी नवीं-दसवीं शती ई० की जिन मूर्तियां हैं।
मानभूम जिले के विभिन्न स्थलों से दसवीं-बारहवीं शती ई० की जैन मूर्तियां मिली हैं। अलुआरा याम से २९ जैन कांस्य मूर्तियां मिली हैं ।" बोरभ ग्राम के जैन मन्दिर और चन्दनक्यारी से ५ मील दूर कुम्हारी और कुमर्दग ग्रामों में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की जैन मतियां हैं। बुधपुर, दारिका, पबनपुर, मानगढ़, दुलभी, बेगलर, अनई, कतरासगढ़ एवं अरसा से भी जैन मूर्तियां मिली हैं। चौसा (शाहाबाद) से नवीं शतीई० तक को जैन मूर्तियां मिली हैं । चौसा ग्राम के समीप मसाढ़ (आरा से ६मील) से भी कुछ जैन अवशेष मिले हैं। आरा के आसपास कई जैन मन्दिर हैं जिनमें से कुछ प्राचीन हैं। सिंहभम में वेणसागर में प्राचीन जैन मन्दिर एवं मूर्तियां हैं।' वैशाली से काले प्रस्तर की एक पालयगीन महावीर मूर्ति मिली है। चम्पा (भागलपुर) से भी कुछ प्राचीन जैन अवशेष मिले हैं।" उड़ीसा
उड़ीसा में पुरी जिले की उदयगिरि-खण्डगिरि पहाड़ियों (पुरी) की जैन गुफाओं से सर्वाधिक मूर्तियां मिली हैं। इनमें आठवीं-नवीं से बारहवीं शती ई० तक की मूर्तियां हैं। जैन प्रतिमाविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से इन गुफाओं की चौबीस जिनों एवं यक्षियों की मूर्तियां विशेष महत्व की हैं। जेयपुर, नन्दपुर, काकटपुर, तथा कोरापुट के भैरवसिंहपुर, क्योंझर के पोट्रासिंगीदो, मयूरभंज के बड़शाही, बालेश्वर के चरंपा और कटक के जाजपुर आदि स्थलों से भी जैन मूर्ति अवशेष मिले हैं । कटक के जाजपुर स्थित अखण्डलेश्वर एवं मैत्रक मन्दिरों के समूहों में भी जैन मूर्तियां सुरक्षित हैं।" १ केवल भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता की एक चन्द्रप्रभ भूति (ल० ११ वीं शती ई०) में ही यक्ष-यक्षी निरूपित हैं ।
राजगिर के समीप से मिली एक ऋषभ मूर्ति (१२ वीं शती ई०) में सिंहासन के मध्य में चक्रेश्वरी उत्कीर्ण हैस्ट००आ०, फलक १६, चित्र ४४; आ०स०ई०ऐ०रि०, १९२५-२६, फलक ५७, चित्र बी २ ये मतियां राजगिर की पहाड़ियों के आधुनिक जैन मन्दिरो में सुरक्षित हैं । ३ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, राजगिर, दिल्ली, १९६०, पृ० १६-१७ ४ चन्दा, आर०पी०, 'जैन रिमेन्स ऐट राजगिर', आ०स०ई०ए०रि०, १९२५-२६, पृ० १२१-२७ ५ प्रसाद, एच०के०, पू०नि०, पृ० २८३-८९ ६ विस्तार के लिए द्रष्टव्य, पाटिल, डी० आर०, दि एन्टिक्वेरियन रिमेन्स इन बिहार, पटना, १९६३ : पाटिल की
पुस्तक में १८वों-१९वीं शती ई० तक की सामग्रियों के उल्लेख हैं। ७ प्रसाद, एच० के०, पू०नि०, पृ० २७५ ८ रायचौधरी, पी० सी०, जैनिजम इन बिहार, पटना, १९५६, पृ० ६४ ९ ठाकूर, उपेन्द्र, 'ए हिस्टारिकल सर्वे ऑव जैनिज़म इन नार्थ बिहार',ज०बि०रि०सो०, खं०४५,भाग १-४,पृ०२०२ १. वही, पृ० १९८
११ जैन जर्नल, खं० ३, अं० ४, पृ० १७१-७४
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