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उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ]
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उड़ीसा की जैन मूर्तिकला दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बन्धित है । यहां भी जिन मूर्तियां ही सर्वाधिक हैं (चित्र५८ ) । जिनों में क्रमशः पार्श्व, ऋषभ, शान्ति एवं महावीर की सबसे अधिक मूर्तियां मिली हैं। जिनों के साथ लांछन उत्कीर्ण हैं | इस क्षेत्र की जिन मूर्तियों में सिंहासन के सूचक सिंहों का चित्रण नियमित नहीं था । धर्मचक्र, देवदुन्दुभि एवं गजों के चित्रण भी नहीं प्राप्त होते । जिनों के साथ यक्ष-यक्षी युगलों के निरूपण की परम्परा नहीं थी । द्वितीर्थी, जिन चौबीसी, चक्रेश्वरी, अम्बिका, रोहिणी, सरस्वती एवं गणेश की भी स्वतन्त्र मूर्तियां मिली । यक्षों एवं महाविद्याओं की एक भी मूर्ति नहीं मिली है ।
उदयगिरि - खण्डगिरि की ललाटेन्दुकेसरी ( या सिहराजा गुफा), नवमुनि, बारभुजी एवं त्रिशूल ( या हनुमान ) गुफाओं में पार्श्व की सर्वाधिक मूर्तियां हैं। बारभुजी एवं नवमुनि गुफाओं में जिन मूर्तियों के नीचे स्वतन्त्र रथिकाओं में यक्षियां निरूपित हैं । बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं ( ल० ११वीं - १२वीं शती ई०) में २४ जिनों की लांछनयुक्त मूर्तियां हैं । त्रिशूल गुफा की मूर्तियों में शीतल, अनन्त और नमि की पहचान परम्परागत लांछनों के अभाव में सम्भव नहीं है ।' चन्द्रप्रभ के बाद जिनों की मूर्तियां पारम्परिक क्रम में भी नहीं उत्कीर्ण हैं ।
बारभुजी गुफा के सामूहिक चित्रण में जिन केवल ध्यानमुद्रा में निरूपित हैं । जिन मूर्तियों के नीचे स्वतन्त्र रथिकाओं में सम्बन्धित जिनों की यक्षियां आमूर्तित हैं ( चित्र ५९ ) । श्रीवत्स से रहित जिन मूर्तियों में त्रिछत्र, भामण्डल, दुन्दुभि, चामरधर सेवक एवं उड्डीयमान मालाधर चित्रित हैं । सम्भव, सुमति, सुपार्श्व, अनन्त एवं नेमि के लांछन या तो अस्पष्ट हैं, या फिर परम्परा के विरुद्ध हैं । जिनों की मूर्तियां पारम्परिक क्रम में उत्कीर्ण हैं ।
नवमुनि गुफा (११ वीं शती ई० ) में जिनों की सात ध्यानस्थ मूर्तियां उत्कीर्णं हैं । मूर्तियां ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, वासुपूज्य, पार्श्व और नेमि की हैं ।" जिनों के साथ भामण्डल, श्रीवत्स एवं सिंहासन नहीं उत्कीर्ण हैं | जिन मूर्तियों के नीचे उनकी यक्षियां आमूर्तित हैं । ललितमुद्रा में विराजमान यक्षियां वाहन से युक्त और दो से भुजाओं वाली हैं । अजित एवं वासुपूज्य की यक्षियों के अंकन में हिन्दू देवी इन्द्राणी एवं कौमारी की लाक्षणिक विशेषताएं प्रदर्शित हैं । अभिनन्दन एवं वासुपूज्य की यक्षियों की गोद में परम्परा के विरुद्ध बालक प्रदर्शित है । अजित एवं अभिनन्दन की यक्षियों के वाहन क्रमशः गज और कपि हैं, जो सम्बन्धित जिनों के लांछन हैं । गुफा में गजमुख गणेश की भी एक मूर्ति है जो मोदकपात्र, परशु, अक्षमाला और पद्मनलिका से युक्त है । ललाटेन्दु गुफा में जिनों की आठ कायोत्सर्गं मूर्तियां हैं | पांच उदाहरणों में पाखं उत्कीर्ण हैं ।' खण्डगिरि पहाड़ी की कुछ पार्श्व, ऋषभ एवं महावीर की द्वितीर्थी तथा अम्बिका मूर्तियां ब्रिटिश संग्रहालय में भी हैं । "
यहां हम बारभुजी गुफा ( खण्डगिरि, पुरी) की २४ यक्षी मूर्तियों का कुछ विस्तार से उल्लेख करेंगे । स्मरणीय है कि २४ यक्षियों के सामूहिक चित्रण का यह दूसरा ज्ञात उदाहरण है ।" गुफा की द्विभुज से विशतिभुज यक्षियां वाहन से युक्त
१ दो जिनों के साथ लांछन मयूर और कोई पौधा हैं । वज्र लांछन दो जिनों के साथ उत्कीर्ण हैं ।
२ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, लिस्ट ऑव ऐन्शण्ट मान्युमेण्ट्स इन दि प्राविन्स ऑव बिहार ऐण्ड उड़ीसा, पृ० २८० - ८२ ३ मि के साथ अम्बिका यक्षी निरूपित है ।
४ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ०२७९-८० : एक उदाहरण में लांछन श्वान् है और अन्य दो में शूकर एवं वज्र । शूकर एवं वज्र दो जिनों के साथ उत्कीर्णं हैं ।
५ गुफा में ऋषभ, चन्द्रप्रभ एवं पार्श्व की तीन अन्य मूर्तियां भी हैं । पार्श्व के आसन पर लांछन रूप में दो नाग उत्कीर्ण हैं ।
६ जटामुकुट से शोभित गरुडवाहना चक्रेश्वरी योगासन में बैठी है ।
७ मित्रा, देबला, 'शासन देवीज इन दि खण्डगिरि केन्स', ज०ए० सो०, खं० १, अं० २, पृ० १२७-२८
८ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८३
९ चंदा, आर० पी०, मेडिबल इण्डियन स्कल्पचर इन दि ब्रिटिश म्यूजियम, लंदन, १९३६, पृ० ७१ १० प्रारम्भिकतम उदाहरण देवगढ़ के मन्दिर १२ पर है ।
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